परमधर्मपीठ : लोगों की नजर खोने से विकास, संकट में बदल जाता है
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 23 अक्टूबर 2025 (रेई) : वाटिकन विदेश सचिवालय में बहुपक्षीय मामलों के अवर सचिव, मोनसिग्नोर डेनिएल पाचो ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आज दुनिया के सामने मौजूद विकास संकट से निपटने के लिए मिलकर काम करने और इसे "अधिक भाईचारे और टिकाऊ भविष्य के निर्माण के अवसर" में बदलने के लिए प्रोत्साहित किया। उनकी यह अपील मंगलवार, 21 अक्टूबर को जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास (यूएनसीटीएडी) के सोलहवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में एक बयान में आई, जिसका विषय था "भविष्य को आकार देना: न्यायसंगत, समावेशी और टिकाऊ विकास के लिए आर्थिक परिवर्तन को गति देना"।
उन्होंने कहा, "जब विकास मानव व्यक्तित्व को नजरअंदाज कर देता है, तो वह अनिवार्य रूप से संकट में बदल जाता है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय वर्तमान में ठीक इसी तरह के संकट का सामना कर रहा है: समानता के बिना विकास, समावेश के बिना प्रगति, और सच्ची समृद्धि के बिना धन।"
"विकास को केवल आंकड़ों और संकेतकों तक सीमित नहीं किया जा सकता" क्योंकि यह, सबसे बढ़कर, "लोगों" के बारे में है, जिनकी गरिमा को बनाए रखने की आवश्यकता है, "विशेषकर उन लोगों के बारे में जो गरीबी और अत्यधिक अभाव में जी रहे हैं"। पोप लियो 14वें का हवाला देते हुए, मोन्सिन्योर पाचो ने इस बात पर जोर दिया कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को "गरीबी के संरचनात्मक कारणों को दूर करने के लिए और अधिक प्रतिबद्ध होने" की आवश्यकता है।
विकास के कुछ प्रमुख क्षेत्र
वाटिकन अधिकारी ने कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर प्रकाश डाला, जिन पर परमधर्मपीठ "प्रामाणिक समग्र विकास को आगे बढ़ाने की साझा प्रतिबद्धता" में ध्यान आकर्षित करना चाहता है। उदाहरण के लिए, उन्होंने कहा कि "जीवन के प्रति खुलापन और उसकी पवित्रता के प्रति सम्मान, सच्चे विकास के केंद्र में हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "एक और महत्वपूर्ण शर्त धार्मिक स्वतंत्रता है।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे धार्मिक कट्टरवाद धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है, लेकिन "देशों द्वारा जानबूझकर धार्मिक उदासीनता या व्यावहारिक नास्तिकता फैलाना" भी मानव विकास में बाधा बन सकता है।
वित्तीय साधन और ऋण संकट
इसके बाद, मोन्सिन्योर पाचो ने इस बात पर जोर दिया कि विकास संकट ने "उसे बढ़ावा देने के लिए बनाई गई संरचनाओं" को कैसे प्रभावित किया है, जिसमें "मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय ढाँचा भी शामिल है, जो अक्सर मौजूदा चुनौतियों का समाधान करने में संघर्ष करता है।"
इसके अतिरिक्त, उन्होंने कहा कि ऋण संकट "सतत विकास" में बाधा डालता है क्योंकि यह "विकासशील देशों को गरीबी में फँसाता है।" अवर सचिव ने इस बात को "अस्वीकार्य" बताया कि "ब्याज भुगतान महत्वपूर्ण सार्वजनिक व्यय से आगे निकल रहे हैं।" उन्होंने जोर देकर कहा कि मूल रूप से विकास के लिए दिए गए ऋण, कई मामलों में "एक दमघोंटू बोझ बन गए हैं जो भावी पीढ़ियों की आशा को खत्म कर देते हैं।"
मोन्सिन्योर पाचो ने "पारिस्थितिक ऋण" का भी उल्लेख किया, जो "पर्यावरण को नुकसान पहुँचानेवाले व्यावसायिक असंतुलनों के साथ-साथ कुछ देशों द्वारा लंबे समय तक प्राकृतिक संसाधनों के असंतुलित उपयोग से उत्पन्न होता है।" उन्होंने याद दिलाया कि इस जयंती वर्ष में परमधर्मपीठ ने राष्ट्रों से उन देशों के ऋण माफ करने का आह्वान किया है जो उन्हें चुकाने में असमर्थ हैं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता का मुद्दा
मोन्सिन्योर पाचो द्वारा विकास संकट को प्रभावित करनेवाले एक अन्य प्रमुख क्षेत्र पर प्रकाश डाला गया, वह है "कृत्रिम बुद्धिमत्ता का तेजी से उदय"। उन्होंने जोर देकर कहा, "यद्यपि कृत्रिम बुद्धिमत्ता में सतत विकास को आगे बढ़ाने की क्षमता है, इसके लिए जिम्मेदारी, विवेक, नैतिक प्रबंधन और मानव-केंद्रित नियामक ढाँचे की भी आवश्यकता है।" उन्होंने आगे कहा कि इसका उपयोग "स्वचालन और अनुकरण" को मानवीय गरिमा का स्थान लेने की अनुमति नहीं दे सकता।
विश्व में आशा का संचार
अपने भाषण में, मोन्सिन्योर पाचो ने सम्मेलन की विषयवस्तु पर भी विचार व्यक्त किए, जिसे उन्होंने "आशा की एक आवश्यक प्रतिक्रिया" बताया - जिसकी विशेषता "नैतिक साहस और एक अलग दिशा अपनाने का निर्णय" है - ताकि "बहुपक्षीय व्यवस्था" के "वर्तमान संकट" का सामना किया जा सके।
परमधर्मपीठ के लिए, उन्होंने कहा कि सम्मेलन की विषयवस्तु में शामिल "भविष्य", "परिवर्तन" और "विकास" शब्द आशा की इसी भावना को मूर्त रूप देते हैं, क्योंकि ये दुनिया भर के राज्यों को एक बेहतर विश्व बनाने, वैश्विक असमानताओं को दूर करने और प्रामाणिक मानव समृद्धि के लिए प्रयास जारी रखने हेतु प्रोत्साहित करते हैं।
उन्होंने कहा, "इसका अर्थ है ऐसा विकास जो मानव को केंद्र में रखता है, उसकी ईश्वर प्रदत्त गरिमा का सम्मान करता है, और कल्याण के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक और आध्यात्मिक आयामों को एकीकृत करके जनहित को आगे बढ़ाता है।"
उन्होंने आगे कहा, "इस परिप्रेक्ष्य में, यूएनसीटीएडी का कार्य, अपने तीन स्तंभों के माध्यम से, आशा की किरण के रूप में खड़ा है: आशा है कि एकजुटता और जिम्मेदारी भविष्य को बदल सकती है, और प्रत्येक व्यक्ति, विशेष रूप से सबसे गरीब व्यक्ति, एक ऐसे विकास में भाग ले सकता है जो न्यायसंगत, अभिन्न और वास्तव में मानवीय हो।"
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