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पाकिस्तान के पेशावर में एक बुजुर्ग रेहड़ी-पटरी वाला सड़क किनारे अपनी लकड़ी की गाड़ी को धकेलता हुआ पाकिस्तान के पेशावर में एक बुजुर्ग रेहड़ी-पटरी वाला सड़क किनारे अपनी लकड़ी की गाड़ी को धकेलता हुआ  (ANSA)

परमधर्मपीठ : बुजुर्गों को समान सुरक्षा और श्रम अधिकार मिलना चाहिए

संयुक्त राष्ट्र में परमधर्मपीठ के प्रतिनिधि ने समाज से बुजुर्ग लोगों को महत्व देने और उनकी देखभाल करने का आग्रह किया है, तथा स्वस्थ अंतर-पीढ़ीगत समन्वय और परिवार के लिए समर्थन का आह्वान किया है।

वाटिकन न्यूज

संयुक्त राष्ट्र, बृहस्पतिवार, 18 सितम्बर 2025 (रेई) : जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक, महाधर्माध्यक्ष एत्तोरे बालेस्त्रेरो ने वृद्धजनों के मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए काथलिक कलीसिया के आह्वान को दोहराया है।

बुधवार को मानवाधिकार परिषद के 60वें नियमित सत्र में बोलते हुए, प्रेरितिक राजदूत ने कहा कि दुनिया भर के समाज आनेवाले जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि 2030 तक, लगभग 6 में से 1 व्यक्ति 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का होगा, यानी कुल 1.4 अरब लोग, और यह आँकड़ा 2050 तक दोगुना होने की उम्मीद है।

इस बदलाव के बीच, महाधर्माध्यक्ष बालेस्त्रेरो ने कहा कि वृद्धजनों की नाजुकता और गरिमा का ध्यान उचित सम्मान और व्यावहारिक विचारों के साथ रखा जाना चाहिए, जिसमें उनकी आर्थिक और सामाजिक भलाई भी शामिल है।

उन्होंने कहा, "यह जनसांख्यिकीय बदलाव इस बात की नैतिक परीक्षा भी है कि समाज अपने बुजुर्गों को कितना महत्व देता है और उनकी कितनी देखभाल करता है।"

महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि जैसे-जैसे आबादी बढ़ती है, उन्हें सक्रिय नागरिकों का समर्थन करने और ज़रूरतमंदों की सहायता करने के बीच संसाधनों का पुनर्वितरण करने के तरीके खोजने होंगे। उन्होंने आगे कहा कि यह बदलाव बुजुर्गों की कीमत पर नहीं हो सकता।

उन्होंने कहा कि उनकी गरिमा उम्र बढ़ने या शारीरिक व मानसिक गिरावट के साथ कम नहीं होती।

महाधर्माध्यक्ष बालेस्त्रेरो ने कहा, "किसी व्यक्ति का मूल्य युवावस्था, कार्यक्षमता, शारीरिक शक्ति या उत्तम स्वास्थ्य से परिभाषित नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह इस अपरिवर्तनीय सत्य में निहित है कि प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर की छवि और समानता में बनाया गया है, एक ऐसा तथ्य जिसे समय भी मिटा नहीं सकता।"

जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र में पोप के प्रतिनिधि ने उन "फेंकने वाली" नीतियों पर दुःख जताया जो बुज़ुर्गों को समाज पर बोझ मानती हैं, जिनमें इच्छामृत्यु या सहायता प्राप्त आत्महत्या को वैध बनाने के प्रयास भी शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि ये नीतियाँ हमारे बुजुर्गों के सम्मान के बजाय "मृत्यु की संस्कृति" को बढ़ावा देती हैं।

महाधर्माध्यक्ष बालेस्त्रेरो ने राष्ट्रों से पेंशन, नकद लाभ और स्वास्थ्य एवं सामाजिक देखभाल सेवाओं के माध्यम से वृद्धजनों की गरिमा को बनाए रखने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि जब वृद्धजनों को अपनी आजीविका बनाए रखने के लिए कार्यबल में बने रहने की आवश्यकता होती है, तो उन्हें भेदभाव से निपटने के लिए श्रम बाजार में सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए।

उन्होंने कहा, "उन्हें वह आराम नहीं मिल रहा जिसके वे हकदार हैं और न ही युवा पीढ़ी को अपना ज्ञान और सलाह देने का अवसर, जिससे वे आशा और जिम्मेदारी के साथ भविष्य का सामना कर सकें।"

विशेषकर महिलाओं को बुढ़ापे में सुरक्षा के लिए सामाजिक सुरक्षा और पेंशन तक समान पहुँच मिलनी चाहिए।

अंत में, महाधर्माध्यक्ष बालेस्त्रेरो ने अंतर-पीढ़ीगत एकजुटता का आह्वान किया ताकि मजबूत सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को बनाए रखा जा सके, खासकर परिवार के समर्थन में, जहाँ कई बुजुर्ग लोग मदद का एकमात्र स्रोत पाते हैं।

उन्होंने अंत में कहा, परमधर्मपीठ "मानव समाज के स्थायी आधार के रूप में परिवार को मजबूत और सुरक्षित करने के लिए परिवारों का समर्थन करने वाली सामाजिक सुरक्षा नीतियों में अधिक निवेश का आह्वान करता है।"

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18 सितंबर 2025, 15:53