पोप लियो 14वें : संत न्यूमन, कलीसिया के धर्माचार्य, नई पीढ़ी के लिए प्रकाश
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, शनिवार, 1 नवंबर 2025 (रेई) : वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में शनिवार 1 नवम्बर को, सब संतों के महापर्व के अवसर पर, पोप लियो 14वें ने शिक्षा जगत की जयन्ती के उपलक्ष्य में समारोही ख्रीस्तयाग अर्पित किया एवं संत हेनरी न्यूमन को कलीसिया के धर्माचार्य घोषित किया।
ख्रीस्तीय धर्म के महान आधुनिक विचारकों में से एक, आध्यात्मिक और मानवीय यात्रा के एक प्रमुख शख्स जिन्होंने कलीसिया पर गहरी छाप छोड़ी, और ऐसे लेखों के लेखक जिन्होंने दिखाया कि विश्वास को जीना ख्रीस्त के साथ प्रतिदिन "हृदय-से-हृदय" संवाद है। सुसमाचार के लिए ऊर्जा और जुनून के कारण 2019 में उनकी संत घोषणा हुई थी। 1801 में जन्मे, न्यूमन आठ साल तक एंग्लिकन पादरी रहे थे और अपनी कलीसिया के सबसे प्रतिभाशाली लोगों में से एक माने जाते थे। ईसा मसीह के बारे में सत्य, कलीसिया का सच्चा स्वरूप, और प्रारंभिक शताब्दियों की परंपरा की खोज उनके लिए, वह मार्ग बन गया जिस पर चलते हुए उनके विश्वास धीरे-धीरे काथलिक धर्म की ओर मुड़ गए।
शिक्षा के केंद्र में, वास्तविक लोग
संत पापा ने अपने उपदेश में कहा, “सभी संतों के इस महापर्व पर, संत जॉन हेनरी न्यूमैन को कलीसिया के धर्माचार्यों की संगति में शामिल करते हुए, और साथ ही, शिक्षा जगत की जयंती के अवसर पर, उन्हें संत थॉमस एक्विनास के साथ, कलीसिया के शैक्षिक मिशन के सह-संरक्षक घोषित करते हुए, हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है। न्यूमन का प्रभावशाली आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कद निश्चित रूप से उन नई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा जिनका हृदय अनंत के लिए प्यासा है, और जो शोध एवं ज्ञान के माध्यम से उस यात्रा पर निकलने को तैयार हैं जो, जैसा कि पूर्वजों ने कहा था, हमें पेर अस्पेरा अद अस्त्रा, कठिनाइयों से होते हुए तारों तक ले जाती है।
संतों का जीवन हमें सिखाता है कि वर्तमान की जटिलताओं के बीच भी, "जगत में तारों के समान चमकने" (फिलिप्पियों 2:15) के प्रेरितिक आदेश की उपेक्षा किए बिना, उत्साहपूर्वक जीना संभव है। इस पावन अवसर पर, मैं शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों से कहना चाहता हूँ: सत्य की सामूहिक खोज और उसे उदारता एवं निष्ठा के साथ साझा करने के प्रति अपनी सच्ची प्रतिबद्धता के माध्यम से, "आज जगत में तारों के समान चमकें।" वास्तव में, आप युवाओं, विशेषकर, गरीबों की सेवा और इस तथ्य के अपने दैनिक साक्ष्य के माध्यम से ऐसा करते हैं कि "ख्रीस्तीय प्रेम भविष्यसूचक है: यह चमत्कार करता है।" (दिलेक्सी ते, 120)
संत पापा ने कहा, “जयंती वर्ष आशा की तीर्थयात्रा है, और शिक्षा के विस्तृत क्षेत्र में आप सभी अच्छी तरह जानते हैं कि आशा एक अनिवार्य बीज है! जब मैं स्कूलों और विश्वविद्यालयों के बारे में सोचता हूँ, तो मैं उन्हें भविष्यवाणी की प्रयोगशालाओं के रूप में देखता हूँ, जहाँ आशा को जीया जाता है, और निरंतर चर्चा एवं प्रोत्साहन दिया जाता है।”
आशीर्वचन एक शिक्षा
सुसमाचार पाठ पर चिंतन करते हुए उन्होंने कहा, “आज के सुसमाचार पाठ में घोषित आशीर्वचन का भी यही अर्थ है। आशीर्वचन अपने साथ वास्तविकता की एक नई व्याख्या लेकर आते हैं। वे गुरु येसु का मार्ग और संदेश दोनों हैं। पहली नजर में, उन लोगों को धन्य घोषित करना असंभव लगता है जो गरीब हैं, या जो न्याय के भूखे-प्यासे हैं, सताए गए हैं या शांतिदूत हैं। फिर भी, जो दुनिया की सोच में अकल्पनीय लगता है, वह ईश्वर के राज्य के संपर्क में आने पर अर्थ और प्रकाश से भर जाता है। संतों में, हम इस राज्य को अपने पास आते और हमारे बीच उपस्थित होते देखते हैं।
संत मत्ती ने आशीर्वचन को एक शिक्षा के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने येसु को एक गुरु के रूप में चित्रित किया है, जो चीजों पर एक नया दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, और जो उनकी अपनी यात्रा में परिलक्षित होता है। हालाँकि, आशीर्वचन केवल एक और शिक्षा नहीं हैं; बल्कि सर्वोत्तम शिक्षा है। इसी प्रकार, प्रभु येसु अनेक शिक्षकों में से एक मात्र नहीं हैं, बल्कि वे सर्वोत्तम गुरु हैं। इसके अलावा, वे सर्वोत्तम स्वामी भी हैं। हम उनके शिष्य हैं और उनके "विद्यालय" में हैं। हम सीखते हैं कि उनके जीवन में, अर्थात् उनके द्वारा तय किए गए मार्ग में, अर्थ का एक ऐसा क्षितिज कैसे खोजा जाए जो सभी प्रकार के ज्ञान पर प्रकाश डाल सके। हमारे विद्यालय और विश्वविद्यालय सदैव सुसमाचार सुनने और उसे व्यवहार में लाने के स्थान बनें!
प्रकाश से संचालित
आज की चुनौतियों का सामना करना कभी-कभी हमारी क्षमता से परे लग सकता है, लेकिन ऐसा नहीं है। आइए, हम निराशावाद को जीतने न दें! मुझे याद है कि मेरे प्रिय पूर्वाधिकारी पोप फ्राँसिस ने संस्कृति और शिक्षा विभाग की पहली आमसभा को दिए अपने संबोधन में किस बात पर जोर दिया था: कि हमें मानवता को शून्यवाद के घेरे हुए अंधकार से मुक्त करने के लिए मिलकर काम करना होगा, जो शायद समकालीन संस्कृति की सबसे खतरनाक बीमारी है, क्योंकि यह आशा को "नष्ट" करने का खतरा पैदा करती है। हमारे चारों ओर व्याप्त अंधकार का यह संदर्भ संत जॉन हेनरी न्यूमन के सबसे प्रसिद्ध लेखों में से एक, "लीड, काइंडली लाइट" को प्रतिध्वनित करता है। उस सुंदर प्रार्थना में, हमें एहसास होता है कि हम घर से बहुत दूर हैं, हमारे पैर अस्थिर हैं, हम आगे का रास्ता स्पष्ट रूप से नहीं समझ पा रहे हैं। फिर भी, इनमें से कोई भी हमें बाधित नहीं करता, क्योंकि हमें अपना मार्गदर्शक मिल गया है: "हे प्रकाश कृपा करके मेरा मार्गदर्शन करो, घेरे हुए अंधकार के बीच, मुझे आगे ले चलो!" हे प्रकाश, कृपा करके मुझे ले चलो। रात अँधेरी है और मैं घर से बहुत दूर हूँ। मुझे आगे ले चलो!
शिक्षा का कार्य
संत पापा ने कहा कि शिक्षा का कार्य वास्तव में, उन लोगों तक करुणामय प्रकाश पहुँचाना है जो निराशावाद और भय की कपटी छाया में कैद हैं। इसीलिए, मैं आपसे कहना चाहूँगा: आइए, हम हार मानने और शक्तिहीनता के झूठे कारणों को निष्क्रिय करें, और आज की दुनिया में आशा के महान चीजों को बांटें। हम उन "नक्षत्रों" पर चिंतन करें और दूसरों को दिखाएँ जो इस वर्तमान समय में, जो इतने अन्याय और अनिश्चितता से अंधकारमय है, रोशनी और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। इसलिए मैं आपको यह सुनिश्चित करने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ कि स्कूल, विश्वविद्यालय और हर शैक्षिक परिवेश, यहाँ तक कि वे भी जो अनौपचारिक हैं, हमेशा संवाद और शांति की सभ्यता के प्रवेश द्वार बनें। अपने जीवन के माध्यम से, उस "बड़ी भीड़" को चमकने दें, जिसका उल्लेख प्रकाशना ग्रंथ आज की धर्मविधि में करती है, और जिसे "हर जाति, हर कुल, और हर भाषा से कोई गिन नहीं सकता," और जो "मेमने के सामने" खड़ी थी। (7:9)
सभी लोगों की गरिमा का सम्मान
पाठ में, भीड़ को देख रहे एक बुजुर्ग ने पूछा: "ये कौन हैं... और कहाँ से आए हैं" (प्रकाशना ग्रंथ 7:13)। इस संदर्भ में, शिक्षा के क्षेत्र में भी, ख्रीस्तीय दृष्टि उन लोगों पर टिकी है जो "महासंकट से निकलकर" आए हैं (पद 14) और उनमें हर भाषा और संस्कृति के उन असंख्य भाई-बहनों के चेहरे पहचानते हैं, जिन्होंने येसु के संकीर्ण द्वार से होकर जीवन की पूर्णता में प्रवेश किया है। इसलिए, एक बार फिर, हमें खुद से पूछना चाहिए: "क्या इसका मतलब यह है कि कम प्रतिभाशाली लोग इंसान नहीं हैं? या क्या कमजोर लोगों की गरिमा हमारे समान नहीं है? क्या कम अवसरों के साथ जन्म लेनेवाले लोग इंसान के रूप में कम मूल्यवान हैं? क्या उन्हें केवल जीवित रहने तक ही सीमित रहना चाहिए? हमारे समाजों और हमारे अपने भविष्य का मूल्य, इन सवालों के हमारे उत्तरों पर निर्भर करता है" (दिलेक्सी ते, 95)। हम यह भी कह सकते हैं कि हमारी शिक्षा का सुसमाचारीय मूल्य भी हमारे द्वारा दिए गए उत्तरों पर निर्भर करता है।
कार्डिनल हेनरी न्यूमन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
संत पापा ने कहा, “संत जॉन हेनरी न्यूमैन की चिरस्थायी विरासत में शिक्षा के सिद्धांत और व्यवहार में कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान शामिल हैं। उन्होंने लिखा है, "ईश्वर ने मुझे अपनी एक निश्चित सेवा करने के लिए बनाया है; उन्होंने मुझे कुछ ऐसा कार्य सौंपा है जो उन्होंने किसी और को नहीं सौंपा है। मेरा अपना एक मिशन है—शायद मैं इसे इस जीवन में कभी न जान पाऊँ, लेकिन अगले जीवन में मुझे यह बताया जाएगा" (ध्यान और भक्ति, III, I, 2)। इन शब्दों में, हम प्रत्येक मानव व्यक्ति की गरिमा के रहस्य और ईश्वर प्रदत्त विविध वरदानों को, खूबसूरती से अभिव्यक्त पाते हैं।
शिक्षकों के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए संत पापा ने कहा, “जीवन इसलिए नहीं चमकता कि हम धनवान, सुंदर या शक्तिशाली हैं। बल्कि, यह तब चमकता है जब हम अपने भीतर इस सत्य को खोज लेते हैं कि हमें ईश्वर ने बुलाया है, हमारी एक बुलाहट है, हमारा एक मिशन है, और हमारा जीवन हमसे कहीं बड़ी चीज की सेवा करता है। हर एक प्राणी की एक भूमिका है। प्रत्येक व्यक्ति जो योगदान दे सकता है वह अद्वितीय रूप से मूल्यवान है, और शैक्षिक समुदायों का कार्य उस योगदान को प्रोत्साहित करना और संजोना है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शैक्षिक यात्रा के केंद्र में हम अमूर्त व्यक्ति नहीं, बल्कि वास्तविक लोग हैं, खासकर वे जो अर्थव्यवस्था के उन मानदंडों के अनुसार कमजोर प्रतीत होते हैं जो उन्हें बहिष्कृत कर देते या यहाँ तक कि मार भी डालते हैं। हमें लोगों को गढ़ने के लिए बुलाया गया है, ताकि वे अपनी पूरी गरिमा के साथ सितारों की तरह चमक सकें।
काथलिक शिक्षा और पवित्रता की खोज
हम कह सकते हैं कि ख्रीस्तीय दृष्टिकोण से शिक्षा सभी को संत बनने में मदद करती है। पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने सितंबर 2010 में ग्रेट ब्रिटेन की अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान, जॉन हेनरी न्यूमैन को धन्य घोषित किया था, तब युवाओं को इन शब्दों के साथ संत बनने के लिए आमंत्रित किया था: "ईश्वर आप में से प्रत्येक के लिए सबसे ज़्यादा यही चाहते हैं कि आप पवित्र बनें। वे आपसे आपकी कल्पना से भी ज्यादा प्रेम करते हैं।" यह पवित्रता का सार्वभौमिक आह्वान है जिसे द्वितीय वाटिकन महासभा ने अपने संदेश का एक अनिवार्य हिस्सा बनाया (लुमेन जेंसियुम, अध्याय V)। और पवित्रता बिना किसी अपवाद के, एक व्यक्तिगत और सामुदायिक यात्रा के रूप में सभी के लिए है, जिसे आशीर्वचन द्वारा चिह्नित किया गया है।
संत पापा ने अंत में कहा, मैं प्रार्थना करता हूँ कि काथलिक शिक्षा प्रत्येक व्यक्ति को पवित्रता के अपने आह्वान को खोजने में मदद करे। संत अगुस्टीन, जिनकी संत जॉन हेनरी न्यूमैन बहुत प्रशंसा करते थे, उन्होंने एक बार कहा था कि हम सहपाठी हैं जिनका एक ही शिक्षक है, जिनका विद्यालय पृथ्वी पर है और जिनका सिंहासन स्वर्ग में है। ( उपदेश 292,1)।
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