संत पापा लियोः भ्रातृत्व-शांति के सेतुओं का निर्माता बनें
वाटिकन सिटी
संत पापा लियो 14वें ने अपने परमधर्माध्यक्षीय काल की प्रथम अंतरराष्ट्रीय प्रेरितिक यात्रा की शुरूआत तुर्की और लेबनान से की। अपनी प्रथम प्रेरितिक यात्रा के प्रथम पड़ाव में संत पापा लियो ने अंकारा के राष्ट्रपति भवन में देश के अधिकारियों, नागर समाज, राजनायिकों, सैन्य अधिकारियों और गणमाण्य लोगों को संबोधित किया।
संत पापा ने कहा कि मैं अपने धर्माध्यक्षीय काल के प्रेरितिक यात्रा की शुरूआत आप के देश से करता हूँ जो ख्रीस्तीयता की शुरूआत से जुड़ी है, जो आज आब्रहाम की संतानों और सारी मानवता को उनकी विभिन्नताओं में भी प्रशंसा और पहचान प्रदान करते हुए एक भ्रातृत्व हेतु आमंत्रित करता है।
उन्होंने अपने संबोधन के शुरू में ही ईश्वरीय सृष्टि की सुरक्षा की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि आप जिन सांस्कृतिक, कलात्मक और आध्यात्मिक समृद्धि के स्थलों पर निवास करते हैं वह हमें बात की याद दिलाती है कि जब अलग-अलग पीढ़ियाँ, परंपराओं और विचारों का मिलन होता है तो महान सभ्यताएं बनती हैं, जिनमें विकास और ज्ञान एक साथ मिलकर एकता को स्थापित करते हैं। वहीं, दूसरी ओर हम मानवीय इतिहास में सदियों से युद्ध की सच्चाई को पाते हैं, जो अब भी महत्वकांक्षाओं और चुनावों से असंतुलित न्याय और शांति को कुचलती है। जबकि अतीत की इन चुनौतियों का सामना करना हमें एक उपहार और उत्तरदायी बनाता है।
सेतुः “संवेदनशीलता का चौराहा
डार्डानेल्स स्ट्रेट पर बनें सेतु की तस्वीर जो संत पापा लियो की प्रेरितिक यात्रा हेतु मुख्य मोहर स्वरुप चुना गया है, देश की विशेष भूमिका को व्यक्त करती है। अपने विचारों को उस निशानी पर संदर्भित करते हुए संत पापा लियो कहा, “भूमध्यसागरीय प्रांत में आप का एक अति महत्वपूर्ण स्थान है, इसके पहले की यह एशिया को यूरोप के संग और पूर्व को पश्चिम से संयुक्त करे, यह सेतु तुर्की को अपने में जोड़ती है।” यह देश के विभिन्न प्रांतों को जोड़ती है मानो वह “संवेदनशीलता का चौराहा” हो। ऐसी परिस्थिति में एकरूपता हमारे लिए एक निर्धनता होगी। वास्तव में, एक समाज अपने में सजीव होता हैं यदि इसमें हम एक विविधता को पाते हैं क्योंकि सेतुओं के द्वारा एक दूसरे से जुड़े हम समाज का निर्माण करते हैं। यद्यपि वर्तमान में मानव समाज को हम तेजी से ध्रुवीकृत और कट्टर विचारों के कारण टूटता पाते हैं।
“मुलाकात की संस्कृति”- ख्रीस्तीय
गणतंत्र तुर्की के प्रति ख्रीस्तीयों की निष्ठा व्यक्त करते हुए संत पापा ने कहा, “ख्रीस्तीय आप के देश की एकता में अच्छा योगदान देना चाहते हैं। हम तुर्की की पहचान के अंग हैं, जिसे संत पापा जॉन 23वें ने आपके सम्मान में व्यक्त किया था, जिन्हें आप “तुर्की संत पापा” के तौर पर याद करते हैं, क्योंकि उनकी गहरी दोस्ती हमेशा आपके संग जुड़ी रही। इस्तांबुल में लातीनी धर्मप्रांत के प्रशासक और तुर्की तथा यूनान में 1935 से 1945 तक प्रेरितिक प्रतिनिधि के रुप में उन्हें नये गणतंत्र के विकास हेतु अथक प्रयास किये। उन सालों में उन्होंने लिखा, “इस्तांबुल के लातीनी ख्रीस्तीयों और अन्य ख्रीस्तीय रीतियों, अरमेनियाई, यूनानी, ख्लदेई, सीरियनों के रुप में हम अल्पसंख्य हैं जो सीमित संपर्क में इस विस्तृत दुनिया में जीवनयापन करते हैं। हम अपना सामीप्य अन्य दूसरे धर्मालंबियों- ऑर्थोडक्स, प्रोटेस्टन्स, यहूदियों, मुस्लिमों, अन्य दूसरे धर्मों के विश्वासियों और अविश्वासियों के संग साझा करना चाहते हैं। यह तर्कपूर्ण लगता है कि हम अपने कार्यो, परिवार या देश की परंपराओं पर ध्यान दें, अपने को अपने समुदाय की परिधि में रखें। मेरे प्रिय भाइयो और बहनों, मैं आप से कहना चाहूँगा कि सुसमाचार के प्रकाश और ख्रीस्तीय सिद्धांतों के अनुसार यह तर्क अपने में गलत है।” तब से लेकर, कलीसिया और समाज में निश्चित तौर पर विभिन्न कदम लिये गये हैं, यद्यपि वे शब्द आज भी हमारे समय में गहरे रुप में ध्वनित होती हैं, और अधिक सुसमाचारी और वास्तविक सोच को जारी रखने हेतु प्रेरित करते हैं, जिसे संत पापा फ्रांसिस ने “मुलाकात की संस्कृति” निरूपित किया है।
ईश्वर की चाहः हृदय बदलें
संत पापा लियो ने कहा, वास्तव में, भूमध्यसागरीय प्रांत के हृदय से मेरे पूज्यनीय पूर्वाधिकारी ने “वैश्विक उदासीनता” का विरोध हमें इस बात हेतु निमंत्रण देते हुए किया कि हम दूसरों के दुःखों का अनुभव करें और गरीबों तथा पृथ्वी की रूदन सुनें। उन्होंने हमें करूणामय कार्य हेतु प्रेरित किया जो एक ईश्वर की करूणा और दया को व्यक्त करती है, “जो शीघ्र क्रोधित नहीं होते बल्कि अपने अतुल्य प्रेम में बने रहते हैं।” (स्तो.103.8)। संत पापा ने कहा, “इस संदर्भ में आप का बृहृद सेतु हमारे लिए ईश्वर की छवि को प्रस्तुत करता है, जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच सेतु स्थापित करते हैं। उन्होंने ऐसा किया क्योंकि हमारे हृदय परिवर्तन हों और हम उनकी तरह बनें।” यह एक बहुत बड़ा सस्पेंशन सेतु है, जो भौतिकी नियमों को भी चुनौती देता है। इसी तरह, अपने निजी और व्यक्ति पहलुओं के अलावा, हम प्रेम के एक अदृश्य और सामाजिक पहलू को भी पाते हैं।
हम सभी ईश्वर की संतान
संत पापा लियो ने न्याय और दया पर जोर देते हुए कहा कि यह “शक्ति की सर्वशक्तिमत्ता” की मानसिकता को चुनौती देती है और करूणा तथा एकता को सच्चे विकास का मापदण्ड घोषित करती है। यही कारण है कि तुर्की जैसे समाज में जहाँ धर्म की एक दृश्यमान भूमिका है, ईश्वर के संतानों, दोनों नर और नारियों, देशियों और परदेशियों, गरीब तथा धनी को सम्मान और स्वतंत्रता प्रदान करना महत्वपूर्ण है। हम सभी ईश्वर की संतान हैं और यह व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनैतिक आयाम है। ईश्वर की योजना के प्रति कोमल हृदयी सदैव जनसामान्य की भलाई करते और सभों को सम्मान प्रदान करते हैं। आज, यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी चुनौती बन गई। यहाँ तक की कृत्रिम बुद्धिमत्ता सिर्फ हमारी पसंद को दोहराता और उन में तेजी लाता है, जिन्हें करीब से देखने पर पता चलता है कि वे मशीनों का काम नहीं, बल्कि मानव का काम है। इसलिए, आइए हम सब मिलकर विकास की दिशा बदलें और हमारे मानवीय परिवार की एकता को हुई क्षति को ठीक करें।
दूसरों के बिना “मैं“” का अस्तित्व नहीं
अपने संबोधन में संत पापा लियो ने सेतु की उपमा के माध्यम जनसामान्य और व्यक्तिगत अनुभवों में एक संबंध स्थापित करने का आहृवान किया। “हमारे लिए परिवार सामाजिक जीवन की प्रथम कड़ी है, जहाँ हम “दूसरों” के बिना “मैं” के भाव को व्यर्थ पाते हैं।” तुर्की में परिवारों का दूसरे देशों की अपेक्षा अपना ही बड़ा महत्व है, और इसके मदद हेतु कई पहलों को हम पाते हैं। सामाजिक सह-अस्तित्व के लिए हमें मनोभावों की जरुरत है और इसके साथ ही हमारी पहल तथा जनसामान्य की भलाई हेतु मूलभूत संवेदनशीलता जो खास कर हमारे लिए परिवार से आता है। पारिवारिक चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए संत पापा लियो ने कहा कि व्यक्तिगत संस्कृति से हमें बड़े अवसर या खुशी नहीं मिलती है और न ही विकास के प्रति हीनता के भाव रखने से या जीवन को अपने से दूर करने से ही।
प्रेम में आंतरिक गहराई
संत पापा ने कहा कि भौतिकतावादी अर्थव्यवस्था हमें दगा देती है क्योंकि यह एकल व्यवसाय बन जाती है। हम इसका जवाब प्रेम और व्यक्तिगत संबंध की संस्कृति से दें। क्योंकि सिर्फ़ साथ मिलकर ही हम अपने असली रूप को प्राप्त करते हैं। सिर्फ़ प्रेम से ही हमारी आंतरिक ज़िंदगी गहरी और पहचान मज़बूत बनती है। मानवीय मूलभूत संबंधों की अवहेलना करना और कमोजियों तथा संवेदनशीलता से सीखने की चूक हमें असहनशील और जटिल दुनिया का सामना करने में असमर्थ बना देती है। यह परिवार है जहाँ हम दम्पत्य जीवन के प्रेम और नारियों की कार्य क्षमता को पाते हैं। नारियाँ अपनी शैक्षणिक और व्यावसाय़िक, संस्कृतिक, और राजनीतिक सक्रियता के कारण देश में अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रभावकारी सेवाएं बहाल कर रही हैं। हमें समाज में नारियों के सेवा को महत्व देने की जरुरत है।
तुर्की संस्कृतियों और धर्मों का एक चौराहा
संत पापा ने तुर्की के राष्ट्रपति को देश में स्थिरता और मेल-मिलाप, न्यायपूर्ण और स्थायी शांति की शुभकामनाएं अर्पित कीं। चार संत पापाओं – पॉल 6वें ने 1967 में, जॉन पॉल द्वितीय ने 1979 में, बेनेडिक्ट 16वें ने 2006 में और फ्रांसिस ने 2014 में – तुर्की का दौरा किया, जिससे पता चलता है कि वाटिकन न सिर्फ़ तुर्की गणराज्य के साथ अच्छे रिश्ते रखता है, बल्कि इस देश के योगदान से एक बेहतर दुनिया बनाने में भी सहयोग करना चाहता है, जो पूरब और पश्चिम, एशिया और यूरोप के बीच एक सेतु है, यह संस्कृतियों और धर्मों का एक चौराहा है। नाईसीन धर्मसभा की 1700वीं सालगिरह, मुलाकात और वार्ता के सार घोषित करता है, और यह बात भी सर्वोदित है कि पहली आठ ख्रीस्तीय एकतावर्धक सम्मेलन का आयोजन तुर्की की ज़मीन में ही समपन हुई।
अपने संबोधन के अंत में संत पापा लियो ने कहा कि हमें आज उन लोगों की जरुरत है जो वार्ता को प्रोत्साहित करते और इसका अभ्यास दृढ़ता और धैर्य में करते हैं। उन्होंने दो विश्व युद्ध के बाद वर्तमान परिस्थिति में देशों के बीच अर्थव्यवस्था और सैन्य शक्ति के संबंध में हो रहे खींचा तानी की ओर ध्यान आकर्षित कराते हुए संत पापा फ्रांसिस की बातों को उद्धृत किया, “टुकड़ों में तृतीय विश्वयुद्ध जारी है।” हम इसे न कहें क्योंकि मानवता का भविष्य खतरे में है। संत पापा लियो ने मिलकर कर शांति, भूखमरी और गरीबी से लड़ाई, स्वास्थ्य और शिक्षा तथा सृष्टि की सुरक्षा के लिए संसाधनों का उपयोग करने का आहृवान किया।
वाटिकन सिर्फ़ अपनी आध्यात्मिक और नैतिक शक्ति से, उन सभी देशों के साथ सहयोग से हर मानव के विकास हेतु कार्य करने की चाह रखता है। संत पापा ने कहा कि आइए, हम सच्चाई और मित्रता में, और विनम्रता से ईश्वर की मदद पर भरोसा करते हुए, मिलकर एक साथ चलें।
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