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विश्वास के प्रति घृणा के कारण मारे गए 9 पोलिश सलेशियन पुरोहित धन्य घोषित किये जायेंगे विश्वास के प्रति घृणा के कारण मारे गए 9 पोलिश सलेशियन पुरोहित धन्य घोषित किये जायेंगे 

नाज़ीवाद और साम्यवाद के दौरान शहीद हुए 11 पुरोहित धन्य घोषित किये जायेंगे

वाटिकन के संत प्रकरण विभाग ने ऑशविट्ज़ और डकाऊ यातना शिविरों में, विश्वास के प्रति घृणा के कारण मारे गए 9 पोलिश सलेशियन पुरोहितों और चेकोस्लोवाक कम्युनिस्ट शासन के दौरान दो धर्मप्रांतीय पुरोहितों के नामों का उल्लेख धन्य घोषणा के लिए किया है। चार नए पुरोहितों को आदरणीय घोषित किये जाने की आज्ञाप्ति मिली है: एक स्पेनिश सिस्टरशियन धर्मबहन, एक स्पेनिश डोमिनिकन पुरोहित, एक सर्दिनियाई पुरोहित, और एक लिगुरियन कार्मेलाइट फ्रायर।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025 (रेई) : कलीसिया को 11 नये धन्य प्राप्त होंगे। 24 अक्टूबर को संत प्रकरण विभाग के प्रीफेक्ट कार्डिनल मरसेलो सेमेरारो के नेतृत्व में हुई एक मुलाकात में संत पापा लियो 14वें ने 9 शहीद सलेशियन पोलिश पुरोहितों, जिन्हें 1941 से 1942 के बीच विश्वास के प्रति घृणा के कारण ऑशविट्ज़ और डकाऊ यातना शिविरों में मौत का सामना करना पड़ा, तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद देश पर कब्ज़ा करनेवाले कम्युनिस्ट शासन द्वारा काथलिक कलीसिया पर उत्पीड़न के परिणामस्वरूप 1951 और 1952 के बीच पूर्व चेकोस्लोवाकिया के दो धर्मप्रांतीय पुरोहितों की हत्या कर दी गई थी, उनकी आज्ञप्तियों को अनुमोदन दिया।

नाजियों के द्वारा शहीद

सलेशियन जान स्विएर्क, इग्नेसी एंटोनोविच, इग्नेसी डोबियाज़, करोल गोल्डा, फ़्रांसिसज़ेक हराज़िम, लुडविक म्रोज़ेक, व्लोड्ज़िमिएर्ज़ ज़ेम्बेक, काज़िमिर्ज़ वोज्शिचोव्स्की, और फ़्रांसिसज़ेक मिस्का – सभी धर्मसंघी पुरोहित प्रेरिताई और शैक्षिक कार्यों में लगे थे जो 1 सितंबर 1939 को पोलैंड पर जर्मन कब्जे के बाद नाजी उत्पीड़न के शिकार हुए।

उस समय के राजनीतिक तनावों के प्रभावित से दूर होने पर भी उन्हें सिर्फ इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि वे काथलिक पुरोहित थे। पोलिश पुरोहित, जिन्हें अपमानित और प्रताड़ित किया गया, उनके प्रति विशेष रोष को उनकी कार्रवाइयों में देखा जा सकता है। यातना शिविरों में, धर्मगुरुओं ने अपने साथी कैदियों को आध्यात्मिक सांत्वना प्रदान की और अपमान तथा यातनाओं के बावजूद, अपना विश्वास प्रकट करना जारी रखा। उनके धर्म-प्रचार का अपमान करके उनका मजाक उड़ाया गया, उन्हें यातनाएँ दी गईं और सीधे मार डाला गया, या फिर कारावास की अमानवीय परिस्थितियों के कारण उन्हें अपनी जान गँवानी पड़ी।

यह जानते हुए कि उनके प्रेरितिक कार्यों को नाजी शासन के विरोध के रूप में देखा जाता था, फिर भी उन्होंने अपना प्रेरितिक कार्य जारी रखा, अपने कर्तव्यों के प्रति वफादार रहे और गिरफ्तार होने, निर्वासित होने या मारे जाने के जोखिम को शांतिपूर्वक स्वीकार किया।

फादर जान बुला और वाक्लाव द्रबोला को जिह्लावा
फादर जान बुला और वाक्लाव द्रबोला को जिह्लावा

चेकोस्लोवाकिया में साम्यवादी शासन के तहत शहीद

ब्रनो धर्मप्रांत के फादर जान बुला और वाक्लाव द्रबोला को जिह्लावा में धर्म के प्रति घृणा के कारण मार डाला गया। उनके प्रेरितिक उत्साह के कारण, 1948 में चेकोस्लोवाकिया में स्थापित कम्युनिस्ट शासन ने दोनों को खतरनाक माना और कलीसिया के खिलाफ खुला उत्पीड़न शुरू कर दिया।

हालांकि, फादर बुला को 30 अप्रैल 1951 को गिरफ्तार कर लिया गया था और वे जेल में थे, लेकिन वे राज्य की गुप्त पुलिस की एक साजिश के शिकार हुए। फादर बुला पर 2 जुलाई 1951 को बाबिसे में हुए एक हमले को प्रेरित करने का आरोप लगाया गया, जिसमें कई कम्युनिस्ट अधिकारी मारे गए थे। उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें 3 अगस्त 1951 को मौत की सजा सुनाई गई, तथा 20 मई 1952 को जिहलवा की जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।

4 नये आदरणीय

24 अक्टूबर को जारी आज्ञाप्ति में, पोप ने 4 ईश सेवकों की आज्ञाप्तियों को भी अनुमोदन दिया है जो अब आदरणीय की श्रेणी में होंगे। उनके नाम है : मरिया इवानजेलिस्ता क्विंतेरो मालफाज, एक सिस्टेरियन धर्मबहन; एंजेलो एंजियोनी, एक धर्मप्रांतीय पुरोहित और मिशनरी इंस्टीट्यूट ऑफ द इमाकुलेट हार्ट ऑफ मैरी के संस्थापक; जोस मेरिनो आंद्रेस, एक डोमिनिकन पुरोहित; और शांति की रानी के जोवाकिम, एक कार्मेलाइट मठवासी।

मरिया इवेंजेलिस्ता क्विंतेरो मालफाज, जो 16वीं और 17वीं शताब्दी के बीच रहीं, का जन्म 6 जनवरी 1591 को स्पेन के सिगलेस में एक गहरा ख्रीस्तीय विश्वासवाले परिवार में हुआ था। कम उम्र में ही अनाथ हो जाने के बाद, उन्होंने अपने धर्मसंघी बुलाहट को अपनाया और वलाडोलिड में संत ऐनी के सिस्टेरियन मठ में प्रवेश किया। उन्हें सौंपे गए कार्यों को पूरा करने में वे अनुकरणीय रहीं, उन्होंने रहस्यमय कृपा का अनुभव किया, जिसका वर्णन उन्होंने अपने धर्मगुरुओं, गास्पर दे ला फिगुएरा और फ्रांसिस्को डे विवर के मार्गदर्शन में लिखित रूप में किया।

1632 में, टोलेदो प्रांत के कासारुबियोस देल मोंते में एक सिस्टरशियन मठ की स्थापना के साथ, उन्हें नए समुदाय में भेज दिया गया और 27 नवंबर 1634 को वे मठाधीश बन गईं, जहाँ उन्होंने प्रार्थना और चिंतन का जीवन शुरू किया। उन्हें लगातार रहस्यमय अनुभव होते रहे, जिनके स्पष्ट बाहरी संकेत दिखाई देते रहे।

1648 में उनकी सेहत बिगड़ गई और गंभीर बीमारी से ग्रस्त होकर उसी साल 27 नवंबर को उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें मठ के चैप्टर हॉल में दफनाया गया और पाँच साल बाद, जाँच करने पर उनके शरीर को सही सलामत पाया गया, और उनकी पवित्रता की ख्याति बढ़ती गई।

ईश्वर के साथ उनका निरंतर संवाद उनकी आध्यात्मिक यात्रा का प्रमुख तत्व था, जिसने उन्हें पापियों के मन परिवर्तन के लिए स्वयं को मसीह के साथ बलिदान के रूप में समझने और समर्पित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए प्रभु पर भरोसा रखते हुए, ईश्वरीय गुणों का उत्साहपूर्वक अभ्यास किया और विपत्तियों तथा शारीरिक दुर्बलताओं को धैर्यपूर्वक सहन किया। उन्होंने हर परिस्थिति में बड़ी विनम्रता के साथ ईश्वर की इच्छा पूरी करने का प्रयास करके ईश्वर के प्रति दानशीलता का भी जीवन जिया।

धन्य रिया इवेंजेलिस्ता क्विंतेरो मालफाज
धन्य रिया इवेंजेलिस्ता क्विंतेरो मालफाज

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24 अक्तूबर 2025, 15:13