पोप : आइये हम अधिक स्वागत करनेवाली कलीसिया का निर्माण करें
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, रविवार, 26 अक्टूबर 2025 (रेई): संत पेत्रुस महागिरजाघर में धर्माध्यक्षीय धर्मसभा की टीमों और सहभागी निकायों की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित ख्रीस्तयाग के दौरान, पोप लियो 14वें ने सभी प्रतिभागियों को "कलीसिया के रहस्य" पर चिंतन करने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि कलीसिया केवल पदानुक्रम और संरचनाओं वाली एक धार्मिक संस्था नहीं है, बल्कि, "ईश्वर और मानव के बीच एकता का प्रत्यक्ष प्रतीक" है, जहाँ ईश्वर सभी को प्रेम में एकजुट एक परिवार के रूप में एक साथ लाते हैं।
संत पापा ने उपदेश में कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, “जब हम सिनॉडल टीमों और सहभागी निकायों की जयंती मना रहे हैं, हमें कलीसिया के रहस्य पर चिंतन करने और उसे पुनः खोजने के लिए आमंत्रित किया जाता है। कलीसिया केवल एक धार्मिक संस्था नहीं है, न ही वह केवल पदानुक्रम और संरचनाओं से जुड़ी है। द्वितीय वाटिकन महासभा हमें याद दिलाती है कि कलीसिया ईश्वर और मानव के बीच एकता का प्रत्यक्ष प्रतीक है, जहाँ ईश्वर हम सभी को भाइयों और बहनों के एक परिवार में लाना चाहते हैं और हमें अपनी प्रजा बनाना चाहते हैं: अपने प्रिय बच्चों से बनी एक प्रजा, जो उसके प्रेम के एक ही आलिंगन में एकजुट हैं।
पवित्र आत्मा द्वारा उत्पन्न और सुरक्षित कलीसियाई एकता के रहस्य पर चिंतन करते हुए, हम धर्मसभा टीमों और सहभागी निकायों का अर्थ समझ सकते हैं। वे कलीसिया के भीतर घटित होनेवाली घटनाओं को व्यक्त करते हैं, जहाँ रिश्ते शक्ति के तर्क पर नहीं, बल्कि प्रेम के तर्क पर आधारित होते हैं। पहला तर्क - जैसा कि संत पापा फ्राँसिस निरंतर चेतावनी देते थे - एक "सांसारिक" तर्क है। इसके विपरीत, ख्रीस्तीय समुदाय में, आध्यात्मिक जीवन को प्राथमिकता दी जाती है, जो हमें प्रकट करता है कि हम सभी ईश्वर की संतान हैं, भाई-बहन हैं, जिन्हें एक-दूसरे की सेवा करने के लिए बुलाया गया है।
कलीसिया का सबसे बड़ा नियम
कलीसिया में सबसे बड़ा नियम प्रेम है। दूसरों पर हावी होने के लिए किसी को नहीं बुलाया गया है; सभी को सेवा करने के लिए बुलाया गया है। किसी को अपने विचार नहीं थोपने चाहिए; हम सभी को एक-दूसरे की बात सुननी चाहिए। किसी को भी बाहर नहीं रखा गया है; हम सभी को सहभागी होने के लिए बुलाया गया है। किसी के पास भी पूर्ण सत्य नहीं है; हम सभी को विनम्रतापूर्वक और साथ मिलकर उसकी खोज करनी चाहिए।
"एक साथ" शब्द ही कलीसिया में एकता के आह्वान को व्यक्त करता है। पोप फ्राँसिस ने चालीसा काल के अपने अंतिम संदेश में हमें "...एक साथ यात्रा करने” की याद दिलाई थी। कलीसिया को एक साथ चलने, सिनॉडल बनने के लिए बुलाया गया है। ख्रीस्तीयों को दूसरों के साथ चलने के लिए बुलाया गया है, कभी भी अकेले यात्री के रूप में नहीं। पवित्र आत्मा हमें प्रेरित करता है कि हम आत्म-मुग्ध न रहें, बल्कि स्वयं को पीछे छोड़कर ईश्वर और अपने भाई-बहनों की ओर बढ़ें। एक साथ यात्रा करने का अर्थ है ईश्वर के बेटे-बेटियों के रूप में हमारी साझा गरिमा पर आधारित एकता को मजबूत करना।" (चालीसा संदेश, 25 फरवरी 2025)
एक साथ फिर भी अकेला
सुसमाचार पाठ पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि दृष्टांत दोनों पात्र एक चीज करने से चूक जाते हैं। फरीसी और कर वसूलनेवाला दोनों प्रार्थना करने के लिए मंदिर जाते हैं। हम कह सकते हैं कि वे दोनों "साथ-साथ जाते हैं" या कम से कम, वे दोनों ही पवित्र स्थान पर एक साथ हैं। फिर भी वे विभाजित हैं; और उनके बीच कोई सम्पर्क नहीं है। दोनों एक ही रास्ता अपनाते हैं, लेकिन साथ-साथ नहीं चलते। दोनों मंदिर में हैं; लेकिन एक पहले स्थान पर है, और दूसरा पीछे रह जाता है। दोनों पिता से प्रार्थना करते हैं लेकिन भाई बने बिना और उनके बीच कुछ भी साझा नहीं है।
यह विभाजन मुख्यतः फरीसी के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। उसकी प्रार्थना, यद्यपि ईश्वर को संबोधित प्रतीत होती, पर केवल एक दर्पण है जिसमें वह स्वयं को देखता है, स्वयं को उचित ठहराता और खुद की प्रशंसा करता है। जैसा कि संत अगुस्टीन लिखते हैं, वह "प्रार्थना करने गया: उसका मन ईश्वर से प्रार्थना करने का नहीं, बल्कि स्वयं की प्रशंसा करने का था" (प्रवचन 115, 2)। फरीसी श्रेष्ठता का भाव रखते हुए, दूसरों का तिरस्कार करता है। वह उन्हें तुच्छ समझता है और अपने अहंकार में डूबा रहता है। इस प्रकार, ईश्वर या दूसरों से संबंध बनाए बिना, वह स्वयं पर ही केंद्रित रहता है।
संत पापा ने कहा, “भाइयो और बहनो, ख्रीस्तीय समुदाय में भी ऐसा हो सकता है। ऐसा तब होता है जब अहंकार सामूहिकता पर हावी हो जाता है, जिससे व्यक्तिवाद पैदा होता है जो सच्चे और भाईचारेवाले रिश्तों को रोक देता है। ऐसा तब भी होता है जब दूसरों से बेहतर होने का दावा, जैसा कि फरीसी ने कर वसूलने वाले के साथ किया था, फूट पैदा करता है और समुदाय को एक आलोचनात्मक और बहिष्कार करनेवाले स्थान में बदल देता है; तथा जब कोई अपनी भूमिका का इस्तेमाल सेवा करने के बजाय शक्ति का प्रयोग करने के लिए करता है।”
पोप ने आगे कहा, हालाँकि, हमें अपना ध्यान कर वसूलनेवाले पर केंद्रित करना चाहिए। उसी विनम्रता के साथ जो उसने दिखाई, हमें भी कलीसिया के भीतर यह स्वीकार करना चाहिए कि हम सभी को ईश्वर और एक-दूसरे की जरूरत है, जो हमें आपसी में प्रेम करने, एक-दूसरे की बात सुनने और साथ-साथ चलने का आनंद लेने के लिए प्रेरित करते हैं। यह इस ज्ञान पर आधारित है कि प्रभु उन लोगों के निकट हैं जो विनम्र हैं, न कि उनके जो स्वयं को झुंड से ऊपर उठाते हैं।
उपस्थित विश्वासियों को सम्बोधित कर संत पापा ने कहा, “सिनॉड की टीमें और सहभागी निकाय इस कलीसिया की एक छवि हैं जो एकता में रहती हैं। ...संवाद, बंधुत्व और खुलकर बोलते हुए आत्मा की बात सुनकर, आप हमें यह समझने में मदद करेंगे कि किसी भी मतभेद से पहले, हमें कलीसिया में ईश्वर की खोज में साथ चलने के लिए बुलाया गया है। मसीह की भावनाओं से खुद को सुसज्जित करके, हम कलीसिया के स्थान विस्तार करते हैं ताकि यह सामूहिक और स्वागत योग्य बन जाए।
तनाव के बीच एकता
यह हमें कलीसिया के जीवन में व्याप्त तनावों के बीच आत्मविश्वास और एक नई भावना के साथ जीने में सक्षम बनाएगा: एकता और विविधता, परंपरा और नवीनता, अधिकार और सहभागिता के बीच। हमें आत्मा को उन्हें रूपांतरित करने देना चाहिए, ताकि वे वैचारिक विरोधाभास और हानिकारक ध्रुवीकरण न बन जाएँ। यह एक को दूसरे में बदलकर उन्हें हल करने का प्रश्न नहीं है, बल्कि उन्हें आत्मा द्वारा शुद्ध होने देना है, ताकि वे सामंजस्य स्थापित कर सकें और एक साथ आत्मपरख की ओर उन्मुख हो सकें। सिनॉडल टीमों और सहभागी निकायों के सदस्यों के रूप में, आप जानते हैं कि कलीसियाई आत्मपरख के लिए "आंतरिक स्वतंत्रता, विनम्रता, प्रार्थना, आपसी विश्वास, नवीनता के प्रति खुलापन और ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण" की आवश्यकता होती है। यह कभी भी केवल अपने व्यक्तिगत या समूह के दृष्टिकोण को प्रस्तुत करना या अलग-अलग व्यक्तिगत विचारों का सारांश प्रस्तुत करना नहीं है" (अंतिम दस्तावेज़, 26 अक्टूबर 2024, 82)। एक सिनॉडल कलीसिया होने का अर्थ है यह पहचानना कि सत्य पर कब्जा नहीं किया जा सकता, बल्कि उसे एक साथ खोजा जाना, तथा स्वयं को प्रेम में डूबे हुए बेचैन हृदय द्वारा निर्देशित होने देना है।
एक अधिक विनम्र कलीसिया का सपना
प्रिय मित्रों, हमें एक अधिक विनम्र कलीसिया का स्वप्न देखना और उसका निर्माण करना चाहिए; एक ऐसी कलीसिया जो फरीसी की तरह घमंड से फूली हुई न हो, बल्कि मानवता के चरण धोने के लिए झुके; एक ऐसी कलीसिया जो फरीसी की तरह कर वसूलने वालों का न्याय न करे, बल्कि सभी के लिए एक स्वागत योग्य स्थान बने; एक ऐसी कलीसिया जो अपने आप में सिमटी न रहे, बल्कि ईश्वर के प्रति सचेत रहे ताकि वह भी सबकी बात सुन सके। आइए हम एक ऐसी कलीसिया के निर्माण के लिए स्वयं को समर्पित करें जो पूरी तरह से धर्मसभा, सेवकाई और मसीह के प्रति समर्पित हो और इसलिए विश्व की सेवा के लिए प्रतिबद्ध हो।
हम सभी पर, और दुनियाभर में फैली हुई कलीसिया पर, मैं ईश सेवक डॉन तोनिनो बेलो के शब्दों के साथ कुँवारी मरियम की मध्यस्थता का आह्वान करता हूँ: "निष्कलंक मरियम, मिलनसार महिला, हमारी कलीसियाओं में सहभागिता की इच्छा को पोषित करें ... उन्हें आंतरिक विभाजनों को दूर करने में मदद करें। जब कलह का दानव उनके बीच में घुस जाए तो हस्तक्षेप करें। गुटबाजी की आग को बुझाएँ। आपसी विवादों को सुलझाएँ। उनकी प्रतिद्वंद्विता को शांत करें। जब वे आम परियोजनाओं को एक साथ पूरा करने की उपेक्षा करते हुए अपने रास्ते पर चलने का फैसला करते हैं, तो उन्हें रोकें।"
प्रभु हमें यह अनुग्रह प्रदान करें: ईश्वर के प्रेम में निहित रहें ताकि हम एक-दूसरे के साथ संवाद में रह सकें और एक कलीसिया के रूप में, एकता और प्रेम के साक्षी बन सकें।
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