संत पापाः हम येसु की शांति के वाहक हैं
वाटिकन सिटी
संत पापा लियो ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह हेतु एकत्रित विश्व के विभिन्न देशों से जमा हुए सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को संबोधित करते हुए कहा, प्रिय भाई एवं बहनो, सुप्रभात।
हमारे विश्वास और आशा के हृदय का क्रेन्द बिन्दु गहरे रुप में ख्रीस्त के पुनरूत्थान में अंकित है। जब हम सुसमाचार को सावधानी पूर्वक पढ़ते हैं तो हम इस बात का अनुभव करते हैं यह रहस्य हमें केवल इसलिए आश्चर्यचकित नहीं करता है कि एक व्यक्ति- ईश्वर का पुत्र- मृतकों में जी उठा है, बल्कि इसलिए भी कि कैसे वे इस भांति करने का चुनाव करते हैं। वास्तव में, येसु का पुनरूत्थान कोई धूमधड़ाके में नहीं होता है न ही यह अपने शत्रुओं से उनका बदला लेना या प्रतिशोध है। यह अपने में एक सुन्दर साक्ष्य है कि कैसे प्रेम अपने में एक हार के बाद पुनः उठने के योग्य होता है जिससे वह अपनी अथक यात्रा को जारी रखें।
मानवीय मनोभाव
संत पापा ने कहा कि जब हम किसी दूसरे के द्वारा दिये गये सदमे के बाद उठते हैं तो हमारी सबसे पहली प्रतिक्रिया क्रोध होती है, एक इच्छा जहाँ हम अपने दुःख देने वाले का हिसाब चुकाना चाहते हैं। पुनर्जीवित येसु इस तरह की प्रतिक्रिया नहीं दिखाते हैं। वे शक्ति प्रदर्शित नहीं करते हैं बल्कि वे नम्रता में प्रेम की खुशी को व्यक्त करते हैं जो किसी घाव से और किसी धोखे से बड़ी होती है।
येसु की चाह- शांति
पुनर्जीवित येसु को अपनी सर्वशक्तिमत्ता घोषित करने या सुनिश्चित करने की आवश्यकता नहीं है। वे अपने मित्रों को, शिष्यों को दिखाई देते हैं और इसे एक अति विवेकपूर्ण ढ़ंग से करते हैं, वे उन्हें अपनी शांति को स्वीकारने हेतु दबाव नहीं डालते हैं। उनकी चाह बस यही है कि वे उनके बीच, शांति में विद्मान रहते हुए उन्हें आत्माग्लानि के भाव से बाहर निकलने में मदद करें। हम इसे अंतिम व्यारी की कोठरी में अच्छी तरह देखते हैं, जहाँ येसु अपने मित्रों को दिखाई देते जो डर के मारे बंद थे। यह वह क्षण है जो हमें अति विशेष शक्ति को व्यक्त करता है- येसु मृत्यु के गर्त में उतरते हुए वहाँ मृत्यु की गुलामी में पड़े लोगों को बचाने के बाद, बंद कमरे में प्रवेश करते हैं जहाँ लोग भय ग्रस्ति हैं, वे उनके लिए शांति के एक उपहार को लाते हैं जिसकी चिंता किसी ने नहीं की होगी।
घावों का मर्म
संत पापा लियो ने कहा कि उनका अभिवादन सरल हैं, एकदम साधारण है, “तुम्हें शांति” मिले। लेकिन इसके साथ वे एक अति सुन्दर निशानी को पाते हैं जो अपने में एकदम विचलित करने वाला है- येसु ने अपने शिष्यों को अपनी हाथ और अपनी बगल दिखाई जिसमें दुःखभोग के चिन्ह थे। उन्होंने उन्हें उस सदमें की घड़ी में अपने घावों को क्यों दिखाया, जिन्होंने उन्हें अस्वीकार करते हुए छोड़ दिया थाॽ क्यों दर्द की उन निशानी को न छिपाया जाए और शर्म के घाव को दोबारा खोलने से बचा जाए?
ईश्वर पीछे नहीं हटते
सुसमाचार हमें पुनः कहता है कि येसु को देखकर शिष्य आनंदित हुए। इसके कारण अपने में गहरे हैं-येसु अब उन बातों से पूरी तरह मेल-मिलाप कर लेते हैं जिन्हें उन्हें सहना पढ़ा। हम उनमें क्रोध की कोई भी छाया को नहीं पाते हैं। घावों को हम गालियों के रुप में नहीं, अपितु किसी घोखे से अधिक एक ठोस प्रेम की निशानी स्वरूप पाते हैं। वे हमारे लिए उस बात के साक्षी हैं कि असफलता की स्थिति में भी ईश्वर पीछे नहीं हटते हैं। उन्होंने हमारा परित्याग नहीं किया।
संत पापा लियो ने कहा कि इस भांति ईश्वर अपने को पूरी तरह और सुरक्षा विहीन प्रस्तुत करते हैं। वे हमसे मांग नहीं करते हैं, वे हमें कीमत चुकाने को नहीं कहते हैं। उनका प्रेम हमें नीचा नहीं दिखाता है, यह हमारे लिए उनकी शांति को व्यक्त करती है जिन्होंने प्रेम के कारण दुःख सहा और वे अब इस बात को अंततः सुनिश्चित कर सकते हैं कि यह अपने में उपयुक्त रहा।
घाव क्षमा की गारंटी
इसके बदले में हम बहुधा अपने गर्व के कारण या कमजोर दिखने के भय से अपने घावों को ढ़कते हैं। हम कहते हैं, “कोई बात नहीं”,“वे बीत गई बातें हैं” लेकिन हम सही अर्थ में घोखे के उस घाव से शांति का अनुभव नहीं करते हैं। कभी-कभी हम क्षमा करने के अपने प्रयास को छिपाना पसंद करते हैं ताकि कमज़ोर न दिखें और दोबारा कष्ट सहने की जोखिम न उठाएँ। येसु ऐसा नहीं करते। वे क्षमा की गारंटी स्वरूप अपने घावों को अर्पित करते हैं। और वे हमें दिखलाते हैं कि पुनरुत्थान के द्वारा अतीत को मिटाया नहीं जाता है, बल्कि दया की आशा में उसका रूपांतरण हो जाता है।
इसके बाद येसु दुहराते हैं, “तुम्हें शांति मिले”। तब वे इस बात को जोड़ते हैं, “पिता ने जैसे मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूँ।” उन घावों के द्वारा येसु अपने शिष्यों को एक कार्य सौंपते हैं जो शक्ति का नहीं लेकिन एक उत्तरदायित्व का है-जो उन्हें विश्व में मेल-मिलाप के साधन बनाता है। मानों उन्होंने कहा हो,“यदि तुम नहीं तो कौन पिता के करूणामय चेहरे को घोषित करेगा, जिन्होंने असफलता और क्षमा का अनुभव किया हैॽ”
पवित्र आत्मा की शक्ति
येसु उनके ऊपर फूंकते और उन्हें पवित्र आत्मा प्रदान करते हैं। यह वही पवित्र आत्मा है जो उन्हें पिता में आज्ञाकारी बनाये रखता है, यहाँ तक की प्रेम में क्रूस मरण तक। उस समय से, प्रेरित उन बातों के संबंध में चुप नहीं रह सकते हैं जिन्हें उन्होंने देखा और सुना है- कि ईश्वर क्षमा देते, हमें उठाते और हमारे विश्वास को पुनः स्थापित करते हैं।
यह कलीसिया में प्रेरिताई का हृदय है- जो दूसरों में शक्ति का संचालन नहीं करती बल्कि विशेष कर उन लोगों में खुशी का संचार करती है जो उसके योग्य नहीं हैं। यह वह शक्ति है जो ख्रीस्तीय समुदायों को ऊपर उठाती और उन्हें विकसित करती है- वे नर और नारियाँ जो अपने जीवन की ओर लौटते और इसे दूसरों के संग साझा करते हैं।
संत पापा लियो ने कहा प्रिय भाई एवं बहनों, हम भी भेजे गये हैं। येसु अपने घावोँ को हमें दिखलाते हैं और कहते हैं, तुम्हें शांति मिले। आप करूणा में चंगाई प्राप्त किये अपने घाव, दूसरों को दिखलाने में न डरें। आप उनके निकट आने से न डरें जो भय या आत्म-ग्लानि से ग्रस्ति हैं। पवित्र आत्मा की सांसें हमें भी इस शांति और इस प्रेम के साक्षी बनाये जो किसी भी पराजय से शक्तिशाली है।
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