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आमदर्शन में पोप : “कलीसिया यहूदी-विरोध को सहन नहीं करती"

पोप लियो 14वें ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान अपनी धर्मशिक्षा में, यहूदी-काथलिक संबंधों के महत्व पर प्रकाश डाला तथा राजनीति को उन्हें प्रभावित न करने देने पर बल देते हुए, इस बात पर जोर दिया कि किस प्रकार सभी धर्म एक साथ मिलकर एक बेहतर विश्व का निर्माण कर सकते हैं।

वाटिकन न्यूज

वाटिकन सिटी, बुधवार, 29 अक्तूबर 2025 (रेई) : वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा लियो 14वें ने हजारों विश्वासियों, तीर्थयात्रियों एवं अतिथियों के समक्ष अपनी धर्मशिक्षा माला प्रस्तुत की।

नोस्त्रा ऐताते की 60वीं वर्षगाँठ मनाने के लिए रोम में उपस्थित तीर्थयात्रियों एवं विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित करते हुए पोप ने कहा, “प्यारे भाइयो एवं बहनो, विश्वास के तीर्थयात्रियो और विभिन्न धार्मिक परंपराओं के प्रतिनिधियो!”

आज के चिंतन के केंद्र में, अंतरधार्मिक संवाद को समर्पित इस आमदर्शन समारोह में, मैं समारितानी स्त्री से कहे गए प्रभु येसु के शब्दों को रखना चाहूँगा: "ईश्वर आत्मा है। उसके आराधकों को चाहिए कि वे आत्मा और सच्चाई से उनकी आराधना करें।" (योहन 4:24)। सुसमाचार में, यह मुलाकात प्रामाणिक धार्मिक संवाद का सार प्रकट करती है: एक ऐसा आदान-प्रदान जो तब स्थापित होता है जब लोग एक-दूसरे के प्रति ईमानदारी, ध्यानपूर्वक सुनने और पारस्परिक समृद्धि के साथ खुलते हैं। यह एक ऐसा संवाद है जो प्यास से उत्पन्न हुआ है: मानव हृदय के लिए ईश्वर की प्यास, और ईश्वर के लिए मानव की प्यास। सूखार के कुएँ पर, येसु संस्कृति, लिंग और धर्म की बाधाओं को पार करते हैं। वे सामरी स्त्री को आराधना की एक नई समझ के लिए आमंत्रित करते हैं, जो किसी विशेष स्थान तक सीमित नहीं है - "न तो पर्वत पर और न ही येरूसालेम में" - बल्कि आत्मा और सच्चाई में साकार होती है। यह क्षण अंतरधार्मिक संवाद के मूल को दर्शाता है: सभी सीमाओं से परे ईश्वर की उपस्थिति की खोज तथा श्रद्धा और विनम्रता के साथ मिलकर उसकी खोज करने का निमंत्रण।

6 दशक बाद काथलिक-यहूदी संवाद

60 वर्षों पूर्व, 28 अक्टूबर 1965 को, द्वितीय वाटिकन महासभा ने नोस्त्रा ऐताते घोषणापत्र के प्रकाशन के साथ, मिलन, सम्मान और आध्यात्मिक आतिथ्य का एक नया क्षितिज खोला। यह उज्वल दस्तावेज हमें अन्य धर्मों के अनुयायियों से बाहरी व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि सत्य के मार्ग पर चलनेवाले साथी के रूप में मिलने; अपनी आम मानवता की पुष्टि करते हुए अलग विचारों का सम्मान करने; और प्रत्येक सच्ची धार्मिक खोज में, उस एक दिव्य रहस्य का प्रतिबिंब देखने की शिक्षा देता है जो समस्त सृष्टि को समाहित करता है।

हमें खासकर, यह नहीं भूलना चाहिए कि नोस्त्रा ऐताते का पहला ध्यान यहूदी जगत पर था, जिसके साथ संत पापा जॉन 23वें ने मूल संबंध को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया था। कलीसिया के इतिहास में पहली बार, ख्रीस्तीय धर्म की यहूदी जड़ों पर एक सैद्धांतिक ग्रंथ आकार लेनेवाला था, जो बाइबिल और ईशशास्त्रीय स्तर पर एक ऐसे बिंदु का प्रतिनिधित्व कर रहा था जहाँ से वापसी संभव नहीं थी। एक "बंधन... आध्यात्मिक रूप से नये व्यवस्थान के लोगों को अब्राहम के वंश से जोड़ता है।"

इस प्रकार, मसीह की कलीसिया स्वीकार करती है कि, ईश्वर की मुक्ति योजना के अनुसार, उसके विश्वास और उसके चुनाव की शुरुआत कुलपिताओं, मूसा और नबियों में पहले से ही पाई जाती है” (नोस्त्रा ऐताते, 4)। इस प्रकार, कलीसिया, “यहूदियों के साथ अपनी साझा विरासत को ध्यान में रखते हुए और राजनीतिक कारणों से नहीं, बल्कि सुसमाचार के आध्यात्मिक प्रेम से प्रेरित होकर, यहूदियों के विरुद्ध किसी भी समय और किसी के भी द्वारा की गई घृणा, उत्पीड़न और यहूदी-विरोधी प्रदर्शनों की निंदा करता है।” (नोस्त्रा ऐताते, 4)

यहूदी-विरोध की निंदा की पुष्टि करते हुए पोप लियो ने कहा, “तब से, मेरे सभी पूर्वाधिकारियों ने यहूदी-विरोध की स्पष्ट शब्दों में निंदा की है। और इसलिए मैं भी पुष्टि करता हूँ कि कलीसिया यहूदी-विरोध को बर्दाश्त नहीं करती और सुसमाचार के आधार पर ही इसके विरुद्ध संघर्ष करती है।

आज हम इन छह दशकों में यहूदी-काथलिक संवाद में जो कुछ भी हासिल हुआ है, उसे कृतज्ञतापूर्वक देख सकते हैं। यह केवल मानवीय प्रयासों के कारण ही नहीं, बल्कि हमारे ईश्वर की सहायता के कारण भी है, जो ख्रीस्तीय धर्म के अनुसार, स्वयं संवाद हैं। हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि इस अवधि में गलतफहमियाँ, कठिनाइयाँ और संघर्ष हुए हैं, लेकिन इनसे संवाद कभी नहीं रुका। आज भी, हमें राजनीतिक परिस्थितियों और कुछ लोगों के अन्याय द्वारा, हमारी मित्रता को विचलित नहीं होने देना चाहिए, खासकर, जब हमने बहुत कुछ हासिल कर लिया है।

क्षेत्र जहाँ विभिन्न धर्म एक साथ कार्य कर सकते हैं

नोस्त्रा ऐताते की भावना कलीसिया के मार्ग को निरंतर प्रकाशित करती रही है। वह मानती है कि सभी धर्म "उस सत्य की किरण को प्रतिबिम्बित कर सकते हैं जो सभी मनुष्यों को प्रकाशित करता है" (एनए, 2) और मानव अस्तित्व के महान रहस्यों के उत्तर खोज सकते हैं, इसलिए संवाद केवल बौद्धिक नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक होना चाहिए। घोषणापत्र सभी काथलिकों - धर्माध्यक्षों, पुरोहितों, धर्मसंघियों और लोकधर्मियों - को आमंत्रित करता है कि वे अन्य धर्मों के अनुयायियों के साथ संवाद और सहयोग में ईमानदारी से शामिल हों, अपनी परंपराओं में जो कुछ भी अच्छा, सच्चा और पवित्र है उसे पहचानें और बढ़ावा दें। यह आज लगभग हर शहर में आवश्यक है जहाँ, मानवीय गतिशीलता के कारण, हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मतभेदों को एक-दूसरे से मिलने और भाईचारे से साथ रहने के लिए प्रेरित किया जाता है। नोस्ट्रा ऐटेटे हमें याद दिलाता है कि सच्चा संवाद प्रेम में निहित है, जो शांति, न्याय और मेल-मिलाप का एकमात्र आधार है, जबकि यह हर प्रकार के भेदभाव या उत्पीड़न को दृढ़ता से अस्वीकार करता है, और प्रत्येक मानव की समान गरिमा की पुष्टि करता है। (एनए, 5)

आज की कलीसिया के लिए नोस्त्रा ऐताते

इसलिए, पोप लियो ने कहा, “प्रिय भाइयो और बहनो, नोस्त्रा ऐताते के 60 साल बाद, हम खुद से पूछें: हम मिलकर क्या कर सकते हैं?” उन्होंने कहा, इसका उत्तर सरल है: “हम मिलकर काम कर सकते हैं। आज की दुनिया को हमारी एकता, हमारी मित्रता और हमारे सहयोग की पहले से कहीं ज्यादा जरूरत है। हमारा हर धर्म मानवीय पीड़ा को कम करने और हमारे आमघर, हमारे ग्रह पृथ्वी की देखभाल करने में योगदान दे सकता है। हमारी अपनी परंपराएँ सत्य, करुणा, मेल-मिलाप, न्याय और शांति की शिक्षा देती हैं। हमें हर समय मानवता की सेवा की पुष्टि करनी चाहिए। हमें ईश्वर, धर्म और संवाद के नाम के दुरुपयोग के साथ-साथ धार्मिक कट्टरवाद एवं अतिवाद से उत्पन्न खतरों के प्रति भी सतर्क रहना चाहिए। हमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता के जिम्मेदार विकास का भी सामना करना होगा, क्योंकि अगर इसे मनुष्यों के विकल्प के रूप में देखा जाए, तो यह उनकी असीम गरिमा का गंभीर रूप से हनन कर सकता है और उनकी मूलभूत ज़िम्मेदारियों को बेअसर कर सकता है। हमारी परंपराओं का प्रौद्योगिकी के मानवीकरण और इसलिए इसके नियमन को प्रेरित करने तथा मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा करने में बहुत बड़ा योगदान है।

दुनिया में आशा की किरण जगाना

जैसा कि हम सभी जानते हैं, हमारे धर्म सिखाते हैं कि शांति मानव हृदय से शुरू होती है। इस संबंध में, धर्म एक आधारभूत भूमिका निभा सकता है। हमें अपने निजी जीवन, अपने परिवारों, अपने आस-पड़ोस, अपने स्कूलों, अपने गाँवों, अपने देशों और अपनी दुनिया में आशा की किरण जगानी होगी। यह आशा हमारी धार्मिक मान्यताओं पर, इस विश्वास पर आधारित है कि एक नई दुनिया संभव है।

60 साल पहले, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, नोस्त्रा ऐताते ने दुनिया में आशा की किरण जगाई थी। आज हमसे आह्वान की जा रही है कि हम युद्ध और बिगड़ते प्राकृतिक पर्यावरण से तबाह होते अपने विश्व में उस आशा को फिर से जगाएँ। आइए, हम सहयोग करें, क्योंकि अगर हम एकजुट हैं, तो सब कुछ संभव है। आइए, हम यह सुनिश्चित करें कि कोई भी चीज हमें विभाजित न करे। और इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आपकी उपस्थिति और आपकी मित्रता के लिए अपना आभार व्यक्त करना चाहता हूँ। आइए, मित्रता और सहयोग की इस भावना को भावी पीढ़ी तक भी पहुँचाएँ, क्योंकि यही वह सच्चा स्तंभ है जिस पर संवाद टिका है।

समापन से पहले संत पापा ने प्रार्थना का आह्वान करते हुए कहा, “और अब, आइए, हम मौन प्रार्थना में एक क्षण रुकें: प्रार्थना में हमारे दृष्टिकोण, हमारे विचारों, हमारे शब्दों और हमारे कार्यों को बदलने की शक्ति है।”

ईश्वर, हृदयों में भाईचारे के प्रेम की भावना भर दे

धर्मशिक्षा माला के अंत में संत पापा ने सभी तीर्थयात्रियों, पर्यटकों एवं विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषी तीर्थयात्रियों एवं अतिथियों का अभिवादन करते हुए कहा, “मैं आज के आमदर्शन समारोह में भाग लेनेवाले सभी अंग्रेजी भाषी तीर्थयात्रियों और आगंतुकों का हार्दिक स्वागत करता हूँ, खासकर, इंग्लैंड, आयरलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, घाना, केन्या, नाइजीरिया, युगांडा, ज़िम्बाब्वे, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका से आनेवाले लोगों का।”

इसके बाद विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित कर उन्होंने कहा, “विशेष रूप से, मैं गैर-ख्रीस्तीय धर्मों के धर्मगुरूओं और प्रतिनिधियों की उपस्थिति के लिए अपना आभार व्यक्त करना चाहता हूँ। ईश्वर, जिसने सभी नर और नारियों को बनाया है, हमारे हृदयों में भाईचारे के प्रेम की भावना भर दे ताकि हम प्रत्येक व्यक्ति में ईश्वर की अच्छाई और सुंदरता की छाप देख सकें।”

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29 अक्तूबर 2025, 14:22