सन्त पापा लियो वाटिकन में सन्त पापा लियो वाटिकन में   (ANSA)

ईशशास्त्रीय संगोष्ठी के प्रतिभागियों को सन्त पापा का सन्देश

परमधर्मपीठीय अकादमी के तत्वाधान में आयोजित संगोष्ठी के प्रतिभागियों को सन्त पापा लियो ने शनिवार को सम्बोधित शब्दों में कहा कि पर्यावरणीय स्थिरता और सृष्टि की सुरक्षा वास्तव में मानव जाति के अस्तित्व के लिए आवश्यक प्रतिबद्धताएं हैं।

वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 13 सितम्बर 2025 (रेई, वाटिकन रेडियो): वाटिकन में धर्मतत्वविज्ञान सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमी के तत्वाधान में आयोजित संगोष्ठी के प्रतिभागियों को सन्त पापा लियो ने शनिवार को सम्बोधित शब्दों में कहा कि पर्यावरणीय स्थिरता और सृष्टि की सुरक्षा वास्तव में मानव जाति के अस्तित्व के लिए आवश्यक प्रतिबद्धताएं हैं।

"शांति की दुनिया के लिए सृजन, प्रकृति, पर्यावरण" शीर्षक से आयोजित उक्त संगोष्ठी के प्रतिभागियों से सन्त पापा ने कहा कि यह आज समसामयिक है तथा उनके पूर्वाधिकारी सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें तथा सन्त पापा फ्राँसिस भी इसी विषय पर अत्यधिक ध्यान आकर्षित कराते रहे थे।

एकजुटता और सहयोग

सन्त पापा ने कहा कि हमारे विश्व की पर्यावरणीय और सामाजिक स्थितियों में सुधार लाने के किसी भी प्रयास के लिए सभी की प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, प्रत्येक को एकजुटता और सहयोग के दृष्टिकोण के साथ अपना योगदान देना होगा, जो क्षेत्रीय, राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और यहां तक ​​कि धार्मिक बाधाओं और सीमाओं को भी पार कर सके।

धर्मतत्वविज्ञान पर चिन्तन करते हुए सन्त पापा ने कहाः "धर्मतत्वविज्ञान, निस्संदेह, कलीसिया की मिशनरी गतिविधि का एक संरचनात्मक आयाम है, जिसकी  जड़ें सुसमाचार में निहित हैं और जिसका अंतिम लक्ष्य ईश्वर के साथ एकता है, और यही ख्रीस्तीय़ सन्देश का उद्देश्य है।"

ईशशास्त्र की आवश्यकता

उन्होंने कहा कि चूँकि सुसमाचार का सन्देश हर युग में हर व्यक्ति को संबोधित है, इसलिए सुसमाचार प्रचार के कार्य को सांस्कृतिक संदर्भों द्वारा निरंतर चुनौती दी जाती है और इसके लिए एक "बाह्य" ईशशास्त्र की आवश्यकता होती है, जिसमें वैज्ञानिक कठोरता और इतिहास के प्रति जुनून का संयोजन हो और साथ ही जो वर्तमान समय की महिलाओं और पुरुषों के दर्द, खुशियों, अपेक्षाओं और आशाओं को अभिव्यक्त करता हो।

सन्त पापा ने कहा कि इन विविध पहलुओं का संश्लेषण एक प्रज्ञा के ईशशास्त्र द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है, जो प्राचीन काल के महान आचार्यों द्वारा विकसित धर्मशास्त्र पर आधारित है। कलीसिया के ये आचार्य पवित्रआत्मा के प्रति समर्पित होकर, विश्वास और तर्कणा, चिंतन, प्रार्थना और अभ्यास को एक साथ लाने में सक्षम बने थे।

ईशशास्त्री सन्त अगस्टीन

इस सन्दर्भ में, संत पापा ने कहा कि सन्त अगस्टीन का सर्वकालिक उदाहरण महत्वपूर्ण है, जिनके द्वारा प्रस्तुत ईशशास्त्र कभी भी विशुद्ध रूप से अमूर्त खोज नहीं रहा, बल्कि सदैव ईश्वर के अनुभव और उनके साथ जीवंत संबंध का फल रहा। उन्होंने कहा कि सन्त अगस्टीन हमेशा उस सत्य की तलाश में रहे जो मनुष्य के आभ्यन्तर में विद्यमान रहता है। उन्होंने कहा कि इसीलिये ईशशास्त्र वह ज्ञान है जो विज्ञान, दर्शन, कला और समस्त मानवीय अनुभवों के साथ संवाद करते हुए, व्यापक अस्तित्वगत क्षितिज को खोलता है।

उन्होंने कहा, "ईशशास्त्री वह व्यक्ति है जो ईशशास्त्र के माध्यम से सभी तक आस्था के "ज्ञान" और "स्वाद" को पहुँचाने की मिशनरी प्रेरणा को जीता है, ताकि वह मानव अस्तित्व को प्रकाशित कर सके, कमज़ोरों और बहिष्कृतों का उद्धार कर सके, ग़रीबों के पीड़ित शरीर को स्पर्श कर चंगाई प्रदान कर सके, भाईचारे और एकजुटता से पूर्ण विश्व के निर्माण में हमारी मदद कर सके और हमें ईश्वर की ओर अभिमुख कर सके।"

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13 सितंबर 2025, 11:15