अगुस्टीनियनों से संत पापा : प्रेम ही सब कुछ का केंद्र है
वाटिकन न्यूज
रोम, सोमवार 15 सितंबर 2025 (रेई) : आज सोमवार 15 सितंबर को संत अगुस्टीन धर्मसंघ की 188 वीं महासभा के प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए संत पापा लियो 14वें ने उनके साथ कुछ समय बिताने की खुशी जाहिर की। अगुस्टीनियानुम में 1 से 18 सितंबर तक चल रहे, महासभा में 46 विभिन्न देशों के लगभग 100 पुरोहित भाग ले रहे हैं। संत पापा ने निवर्तमान प्रायर जनरल को धन्यवाद दिया जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया है और नवनिर्वाचित प्रायर जनरल फादर जोसेफ फार्रेल को बधाई देते हुए कहा, “इस चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए हम सभी की प्रार्थना की आवश्यकता है, हमें इसे नहीं भूलना चाहिए!”
'तुम जो बनोगे, उससे प्रेम करो'
संत पापा ने कहा कि धर्मसमाज की महासभा एक साथ प्रार्थना करने और प्राप्त उपहार, करिश्मे की प्रासंगिकता और समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों और समस्याओं पर चिंतन करने का एक अनमोल अवसर है। विभिन्न गतिविधियों को करते हुए, महासभा में आत्मा की बात सुनना, एक तरह से संत अगुस्टीन ने जो कहा था, "अपने आप से बाहर मत जाओ, अपने आप में लौट आओ: सत्य भीतर के मनुष्य में निवास करता है," उसके अनुरूप, विश्वास की यात्रा में आंतरिकता के महत्व को याद करना है।
संत पापा ने कहा, “आंतरिकता हमारी व्यक्तिगत और सामुदायिक ज़िम्मेदारियों से, कलीसिया और विश्व में प्रभु द्वारा हमें सौंपे गए मिशन से, और तात्कालिक प्रश्नों और समस्याओं से पलायन नहीं है। हम अपने भीतर की ओर मुड़ते हैं और फिर अपने मिशन में और भी अधिक प्रेरित और उत्साही बनते हैं। अपने भीतर की ओर मुड़ने से हमारी आध्यात्मिक और प्रेरितिक प्रेरणा का नवीनीकरण होता है: हम धार्मिक जीवन और समर्पण के स्रोत की ओर लौटते हैं, ताकि प्रभु द्वारा हमारे मार्ग पर रखे गए लोगों को प्रकाश प्रदान कर सकें। हम प्रभु के साथ और अपने धार्मिक परिवार में अपने भाइयों और बहनों के साथ अपने रिश्ते को फिर से खोजते हैं, क्योंकि प्रेम के इस मिलन से हम प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं और सामुदायिक जीवन और प्रेरितिक चुनौतियों के मुद्दों का बेहतर ढंग से समाधान कर सकते हैं।”
प्रेम धर्मशास्त्र का मूल है
धार्मिक जीवन में प्रेम के महत्व पर चिंतन जारी रखते हुए, संत पापा लियो ने अगुस्टीनियनों को याद दिलाया कि प्रेम धर्मशास्त्र के अध्ययन और बौद्धिक निर्माण के लिए भी "एक मूलभूत मानदंड" है। ईश्वर तक केवल तर्क से नहीं पहुँचा जा सकता, बल्कि उसे "उसकी महानता से चकित" होना चाहिए, और अपने जीवन और बाह्य घटनाओं का परीक्षण करना चाहिए ताकि "उनमें सृष्टिकर्ता के पदचिह्नों का पता लगाया जा सके" - और सबसे बढ़कर, "उसे प्रेम किया जाए और उसे प्रेम करने दिया जाए।"
संत पापा ने अपने भाइयों से कहा कि वे "सुसमाचारी निर्धनता के प्रति निष्ठावान रहें और यह सुनिश्चित करें कि यह धार्मिक जीवन का मानदंड बने", जिसमें "हमारे प्रेरितिक मिशन की सेवा में, साधन और संरचनाएँ" भी शामिल हैं।
मिशनरी भावना को पुनर्जीवित करना
संत पापा लियो ने अगुस्टीनियनों के "मिशनरी आह्वान" पर प्रकाश डाला, जो 16वीं शताब्दी में उनके पहले मिशन में निहित था और जिसे उन्होंने "जुनून और उदारता" के साथ दुनिया भर में निभाया। उन्होंने कहा, "इस मिशनरी भावना को बुझना नहीं चाहिए, क्योंकि आज भी इसकी बहुत आवश्यकता है।"
संत पापा लियो ने आगे कहा, "मैं आपको इसे पुनर्जीवित करने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ, यह याद रखते हुए कि जिस सुसमाचार प्रचार मिशन के लिए हमें बुलाया गया है, उसके लिए विनम्र और सरल आनंद, सेवा के लिए तत्परता और उन लोगों के जीवन में सहभागिता की आवश्यकता है जिनके पास हमें भेजा गया है।"
अंत में संत पापा ने भाईचारे के आनंद में और पवित्र आत्मा की प्रेरणाओं के प्रति खुले हृदय से महासभा को जारी रखेने हेतु प्रेरित किया। संत पापा ने कहा, “मैं आपके लिए प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु की दया आपके विचारों और कार्यों को प्रेरित करे, और आपको दुनिया में सुसमाचार के प्रेरित और साक्षी बनाए। कुँवारी मरियम और संत अगुस्टीन आपकी मध्यस्थता करें।”
इतना कहने के बाद संत पापा ने उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
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