चीन और कलीसिया : एक सेतु का निर्माण
वाटिकन न्यूज
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 18 दिसम्बर 2025 (रेई) : “मेरा चीनी सपना ख्रीस्तीय धर्म और चीन के बीच एक पुल बनना है: मुझे उम्मीद है कि पोप मेरे देश का दौरा कर पायेंगे, और चीन सुसमाचार की रोशनी का स्वागत कर सकेगा।”
फोकोलारे मूवमेंट के एक चीनी सदस्य चियारेटो यान ने वाटिकन मीडिया के साथ एक साक्षात्कार में ये बातें कही हैं।
चियारेटो यान अपनी किताब “मेरा चीनी सपना: ख्रीस्तीय धर्म के साथ बातचीत और मुलाकातें” के विमोचन के अवसर पर बोल रहे थे, जिसे मंगलवार को रोम के पियात्सा पियो स्थित वाटिकन मीडिया मुख्यालय में प्रस्तुत किया गया।
सच्चाई, अच्छाई और सुंदरता की विश्वव्यापी इच्छा
यान बताते हैं कि यह सपना इस विश्वास में निहित है कि चीनी संस्कृति के लिए, ख्रीस्तीय धर्म कोई बाहरी चीज नहीं बल्कि एक संभावित बातचीत का साथी है।
उन्होंने कहा, “हर इंसान में सच्चाई, अच्छाई, सुंदरता और प्यार की एक विश्वव्यापी इच्छा रहती है,” “एक गहरी चाहत जो संस्कृतियों और परंपराओं को पार करती है, और जो ख्रीस्तीय धर्म में ईश्वर के साथ एक निजी रिश्ते में दिखाई देती है।”
यान आगे कहते हैं, “एक तरफ मैं काथलिक ख्रीस्तीय हूँ, और दूसरी तरफ मैं चीनी हूँ। ख्रीस्तयी धर्म बताता है कि ईश्वर हमारी ओर आते हैं, कि वे मानवजाति के प्यार के खातिर शरीरधारण करते हैं। मानव की ओर ईश्वर की पहल ईश्वर की प्रकाशना है। दूसरी संस्कृति, साथ ही दूसरे धर्म भी, मानव का ईश्वर को खोजने की कोशिश है। इसीलिए मेरा मानना है कि ये दोनों 'दिशाएँ' मिलती हैं; वे एक-दूसरे के विपरीत नहीं हैं।”
आगे बढ़ने के पाँच रास्ते
इस भावना के साथ, लेखक ने शोध के पाँच क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है जो चीनी संस्कृति और ख्रीस्तीय धर्म को एक साथ ला सकते हैं: दर्शनशास्त्र, पारिस्थितिकी, राजनीति, अर्थशास्त्र और सांस्कृतिक वार्ता।
यान कहते हैं, “ये सभी बहुत ज्यादा सामयिक मुद्दे हैं, और ये पूरी मानवजाति के लिए एक साझा चुनौती हैं। हमने इसे पोप फ्राँसिस के समय में, लौदातो सी’ और फ्रेतेली तूत्ती जैसे विश्वपत्र में देखा है, लेकिन हम इसे आज की चीनी बहस में भी देखते हैं।”
यान आगे कहते हैं कि यह मेल चीनी परंपरा पर भी आधारित है। “कन्फ्यूशियस कहते हैं: ‘हम इस जीवन के बारे पर्याप्त नहीं जान सकते, इसलिए मैं मरने के बाद की जिदगी के बारे शोध नहीं करता।’ लाओज़ी कहते हैं: ‘जो जानते हैं वे बोलते नहीं; जो बोलते हैं वे जानते नहीं।’ ये बातें पारलौकिकता को नकारने की ओर नहीं करतीं, बल्कि विनम्रता के नज़रिए की ओर इशारा करती हैं: मरने के बाद का जीवन एक रहस्य है, और मनुष्य इसे नहीं समझ सकते — वे सिर्फ इसके करीब जा सकते हैं। दिल से, यह खुलेपन का नजरिया है जो भाषा और तर्क की सीमाओं को पहचानता है, और जो ख्रीस्तीय धर्म के साथ संपर्क का एक बिन्दु पाता है।”
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