म्यानमार का गिरजाघर संघर्षों के बीच (प्रतीकात्मक तस्वीर)  म्यानमार का गिरजाघर संघर्षों के बीच (प्रतीकात्मक तस्वीर)  

म्यांमार के धर्माध्यक्ष "बहुसंकट' में करुणा और आशा के बीच"

म्यानमार में विगत चार वर्षों से जारी गृहयुद्ध पर गहन चिन्ता व्यक्त करते हुए देश के काथलिक धर्माध्यक्षों ने शान्ति की बहाली का आह्वान करते हुए कहा है कि शांति सम्भव है और शांति ही एकमात्र रास्ता है।

वाटिकन सिटी

याँगोन, गुरुवार, 30 अक्तूबर 2025 (फीदेस समाचार एजेन्सी): म्यानमार में विगत चार वर्षों से जारी गृहयुद्ध पर गहन चिन्ता व्यक्त करते हुए देश के काथलिक धर्माध्यक्षों ने शान्ति की बहाली का आह्वान करते हुए कहा है कि शांति सम्भव है और शांति ही एकमात्र रास्ता है।

शांति की अपील

वाटिकन की सुसमाचार प्रचार परिषद प्रेस एजेन्सी फीदेस के अनुसार, 29 अक्टूबर को म्यानमार के काथलिक धर्माध्यक्षों ने शांति हेतु एक अपील जारी कर एक पत्र प्रकाशित किया जो इस प्रकार हैः "यह हार मानने का समय नहीं है। यह दर्द की राख में आशा की किरणें खोजने का समय है। शांति संभव है; शांति ही एकमात्र रास्ता है। हम घृणा को अपनी पहचान न बनने दें। हम निराशा को हावी न होने दें। हमारी प्रतिक्रिया सरल हो: अपने कामों द्वारा हम करुणा दर्शायें, सौम्यता से बात करें और सदैव सत्य बोलें तथा और शांति की निरंतर खोज में लगे रहें।"   

फीदेस को भेजे गए उक्त पत्र का शीर्षक था "म्यांमार के 'बहुसंकट' में करुणा और आशा का संदेश", जिस पर म्यानमार के सभी धर्माध्यक्षों ने हस्ताक्षर किये। उन्होंने लिखाः "शुरुआत ज़मीनी हकीकत के कड़वे अवलोकन से होती है: "हमारे प्यारे देश में, उत्तर से दक्षिण तक, पूर्व से पश्चिम तक, हमारे लोग हाल के इतिहास में अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहे हैं। यह कोई एक त्रासदी नहीं है, अपितु एक विशेष 'बहुसंकट' है, जिसमें कई आपात स्थितियाँ एक साथ आती हैं और एक-दूसरे को और भी बदतर बना देती हैं। हम सशस्त्र संघर्ष, प्राकृतिक आपदाओं, विस्थापन, आर्थिक पतन और एक गहरे सामाजिक विभाजन का सामना कर रहे हैं।" उन्होंने लिखा कि पहला पहलू मानवीय प्रभाव का है: "किसी भी चीज़ से ज़्यादा, लोगों का दुख हमारे दिलों को तोड़ देता है।"

30 लाख से अधिक विस्थापित

संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, बढ़ते संघर्ष के कारण म्यांमार में 30 लाख से ज़्यादा लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं, जिनमें वयोवृद्ध, पुरुष और महिलाएँ माताएँ तथा अनेक बच्चे शामिल हैं। कुछ लोग पेड़ों के नीचे, धान के खेतों में, मठों में और अस्थायी तंबुओं में बिना भोजन, पानी, शिक्षा या सुरक्षा के शरण ले रहे हैं। संघर्षरत क्षेत्रों में, "शहर भूतिया कस्बों में बदल गए हैं", भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में, पूरे के पूरे गाँव जमींदोज हो गए हैं, जिससे लोगों में "गहरा आघात और भय" पैदा हो गया है।

धर्माध्यक्षों का कहना है: "महिलाओं और बच्चों पर सबसे ज़्यादा बोझ है। कई बच्चे सालों से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। उनकी कक्षाएँ मलबे में तब्दील हो गई हैं। उनका भविष्य अधर में लटक गया है।" कईयों ने अपने माता-पिता खो दिए हैं। कुछ ने हिंसा देखी है। कई भूखे हैं, बीमार हैं और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में असमर्थ हैं। महिलाएँ भी चुपचाप कष्ट सहती हैं। वे अपने परिवारों को खोने का दर्द, अपने नन्हे-मुन्नों की देखभाल की ज़िम्मेदारी और शोषण के डर को सहती हैं।

विश्वास और संवाद की कमी

धर्माध्यक्षों ने कहा कि सबसे "दर्दनाक बात" यह कि "आज हम जो सबसे गहरे घाव देख रहे हैं, वह है सभी विभिन्न पक्षों और हितधारकों के बीच समझ और विश्वास की कमी। कई मोर्चे हैं, कई दृष्टिकोण हैं, कई ज़रूरतें हैं। अक्सर संवाद का अभाव रहता है और इसी वजह से सहायता अवरुद्ध होती है, विकास में देरी होती है, और मानवीय पहुँच सीमित होती है।"

म्यानमार में शांति की बहाली और पुनर्मिलन का आह्वान करते हुए धर्माध्यक्षों ने लिखा कि उनकी अभिलाषा है कि "हमारा राष्ट्र, घायल और क्षतिग्रस्त होकर, पुनः उठ खड़ा हो, न केवल इमारतों के साथ, बल्कि नए दिलों के साथ।"

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30 अक्तूबर 2025, 12:25