जेस्विट पुरोहित ने युद्धग्रस्त म्यांमार में प्रभाव नहीं, निष्ठापूर्ण उपस्थिति का आह्वान किया
Chainarong Monthienvichienchai, LiCAS News
जेस्विट फादर गिरीश सांतियागो ने विश्व मिशन रविवार की पूर्व संध्या पर रोम में ख्रीस्तयाग की अध्यक्षता करते हुए साथी मिशनरियों से म्यांमार के पीड़ित लोगों के साथ खड़े होने का आह्वान किया।
म्यांमार के जेस्विट सुपीरियर, जिन्होंने एशिया के सबसे नाजुक देशों में से एक में वर्षों तक सेवा की है, युद्ध, विस्थापन और निराशा के बीच जीने और सेवा करने के अर्थ पर चिंतन किया।
धर्मसंघी पुरोहितों के समक्ष बोलते हुए, उन्होंने कहा कि आज कलीसिया का मिशन सफलता या संख्या से नहीं, बल्कि पीड़ित लोगों के बीच निष्ठापूर्ण उपस्थिति से मापा जाता है।
उनके ये शब्द ऐसे समय में आए हैं जब म्यांमार लगातार गृहयुद्ध, बड़े पैमाने पर विस्थापन और गहराते मानवीय संकटों का सामना कर रहा है, जिसने राष्ट्र के विश्वास और उसके लोगों के दुःखों को सहने की क्षमता, दोनों की परीक्षा ली है।
उन्होंने कहा कि म्यांमार, जिसे कभी "स्वर्ण भूमि" के रूप में जाना जाता था, अपने समृद्ध संसाधनों, सुनहरे पैगोडा और करुणा व सद्भाव में निहित गहरी बौद्ध आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध था।
उन्होंने याद करते हुए कहा, "यह सब सात दशक पहले हुआ था। राष्ट्रीयकरण ने राष्ट्र को खंडित कर दिया। विदेशियों को भागना पड़ा।" उनमें उनके अपने माता-पिता और भाई-बहन भी शामिल थे, जो भारत भाग गए, जहाँ बाद में उनका जन्म "विस्थापित स्थिति" में हुआ।
दशकों बाद, जिसे उन्होंने "मेरा स्वर्णिम काल" बताया, उन्हें म्यांमार अपने माता-पिता की जन्मभूमि वापस भेजा गया। उन्होंने बतलाते हुए कहा, "यांगून हवाई अड्डे पर, मेरा स्वागत उन रिश्तेदारों ने किया जिन्हें मैं पहले कभी नहीं जानता था। हम रोए। हम गले मिले। यह पुनर्मिलन का समय था।"
लेकिन जिस म्यांमार में वे लौटे, वहाँ उथल-पुथल मची हुई थी। फादर गिरीश ने कहा, "जहाँ लाश होगी, वहाँ चील भी इकट्ठे होंगे।" उन्होंने धर्मग्रंथ का हवाला देते हुए बताया कि कैसे देश की प्राकृतिक संपदा ने शोषण को आकर्षित किया है।
उन्होंने आगे कहा, "जहाँ प्रचुर प्राकृतिक संसाधन हैं, वहाँ करीबी दोस्त, सेना और बड़े पड़ोसी देशों की नजरें रहती हैं।"
उन्होंने कहा कि इसका नतीजा यह हुआ है कि देश "कोविड-19, तख्तापलट, अर्थव्यवस्था के पतन, सैन्य भर्ती कानून, बाढ़ और भूकंप" से अपंग हो गया है।
आज, लगभग चालीस लाख लोग विस्थापित हैं—आंतरिक रूप से और शरणार्थी के रूप में। परिवार बिखर गए हैं, समुदाय विभाजित हो गए हैं, और कई पुरोहित और धर्मसंघी गरीबों की सेवा के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।
इस पीड़ा की पृष्ठभूमि में, फादर गिरीश ने संत पौलुस द्वारा तिमोथी को लिखे शब्दों को याद किया, "प्रभु मेरे साथ रहे और मुझे शक्ति दी।"
उन्होंने कहा, "ये शब्द हमारे अपने संदर्भ में लिखे जा सकते थे, काचिन राज्य में छिपे एक जेस्विट घर से, सीमांत क्षेत्र में स्थानांतरित एक स्कूल से, एक आंतरिक रूप से विस्थापित शिविर से जहाँ लोग अनिश्चितता में प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि म्यांमार में जेस्विट पुरोहितों का अनुभव संत पौलुस के विश्वास को प्रतिबिंबित करता है: "अनिश्चितता, बिखराव, और फिर भी—कलीसिया के प्रति निष्ठा और सोसाइटी ऑफ जीसस के प्रति वफादारी।"
उन्होंने कहा, "हमारे समुदायों ने फिर से खोज लिया है कि मिशन का वास्तविक अर्थ क्या है—छोटा, सरल और गरीब बनना। उस गरीबी में, संरचनाएँ नहीं, बल्कि उपस्थिति; दक्षता नहीं, बल्कि निष्ठा; संख्या नहीं, बल्कि साक्ष्य।"
संत लूकस रचित सुसमाचार के अध्याय 10 में येसु के शब्दों का हवाला देते हुए, "मैं तुम्हें भेड़ियों के बीच मेमनों की तरह भेज रहा हूँ," फादर गिरीश ने कहा कि यह म्यांमार में जेस्विटों का बुलावा है बचाने के लिए या पीछे हटने के लिए नहीं, बल्कि "जाने के लिए—तब भी जब यह असुरक्षित लगे।"
उन्होंने कहा, "हमें मेमनों की तरह भेजा गया है—नाजुक लेकिन स्वतंत्र, गरीब लेकिन शांति के साथ।" "जब हमारे पास कोई शक्ति नहीं होती, तो ईश्वर की उपस्थिति हमारी शक्ति बन जाती है। जब हमारे पास कोई आवाज नहीं होती, तो उनकी आत्मा हमारी गवाही के माध्यम से बोलती है।"
पोप फ्राँसिस और पोप लियो 14वें, दोनों को उद्धृत करते हुए, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आज मिशन का अर्थ है "उपस्थिति और सुनना—जहाँ लोग पीड़ित हैं, वहाँ खड़े होना, उन लोगों के साथ चलना जिनकी आवाजें दबा दी जाती हैं, और एक ऐसे ईश्वर को प्रकट करना जो अपने लोगों का परित्याग नहीं करता।"
उन्होंने कहा कि म्यांमार में, "शांति" शब्द का गहरा अर्थ है। "आज 'शांति' कहने का अर्थ है विस्थापितों और भूखों का साथ देना, कीमत चुकाने पर भी सच बोलना, और नफरत या बदले की भावना से इनकार करना।"
फादर गिरीश ने अपने साथी जेस्विट पुरोहितों को याद दिलाया कि मिशन कभी अकेले नहीं होता: "येसु ने अपने शिष्यों को दो-दो करके भेजा था। हम अकेले नहीं, बल्कि मिशन में भाई हैं—पुरोहितों, धर्मगुरुओं, लोकधर्मी और सद्भावना रखनेवाले पुरुषों और महिलाओं के साथ सहयोगी।"
हिंसा और क्षति के बीच भी, उन्होंने संत पौलुस के इस दृढ़ विश्वास से आशा की किरण जगाई: "प्रभु हमें हर बुरे काम से बचाएँगे।" उन्होंने कहा, ईश्वर की निष्ठा "कभी विफल नहीं होती—हिंसा की राख के नीचे भी, करुणा के छिपे हुए कार्यों में, हमारे लोगों के मौन धैर्य में भी।"
उन्होंने अंत में कहा, "हमें म्यांमार को बचाने के लिए नहीं, बल्कि म्यांमार के साथ खड़े होने के लिए बुलाया गया है—उस ईश्वर को प्रकट करने के लिए जो पहले से ही उस विश्वास के माध्यम से उसे बचा रहे हैं जो निराशा के आगे नहीं झुकता।"
फादर गिरीश ने आशा के अंतिम आह्वान के साथ अपने प्रवचन का समापन किया : "ईश्वर का राज्य आपके निकट है—यहाँ भी, अभी भी। आइए हम अपने आनंद को फिर से खोजें—जेस्विट होने का आनंद, सीमाओं पर भेजे गए पुरुष के रूप में, जहाँ ईश्वर पहले से ही प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
संत पेत्रुस महागिरजाघर में विश्व मिशन रविवार समारोह के अंत में, पोप लियो 14वें ने दुनियाभर में शांति के लिए हार्दिक प्रार्थना की और म्यांमार के लिए विशेष अपील की, जहाँ मई 2021 से हिंसक संघर्ष जारी है।
दक्षिण-पूर्व एशियाई देश से आ रही रिपोर्टों को "दुखद" बताते हुए, पोप ने नागरिकों और महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे पर जारी सशस्त्र संघर्षों और हवाई बमबारी पर शोक व्यक्त किया। हिंसा के बीच पीड़ित सभी लोगों के प्रति अपनी निकटता व्यक्त करते हुए, उन्होंने युद्धरत पक्षों से अपने हथियार डालने का आग्रह किया।
पोप लियो ने कहा, "मैं तत्काल और प्रभावी युद्धविराम के लिए अपनी हार्दिक अपील दोहराता हूँ। समावेशी और रचनात्मक संवाद के माध्यम से युद्ध के साधनों को शांति के साधनों द्वारा प्रतिस्थापित किया जा सकता है।"
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