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दण्डमोचन दण्डमोचन   ( Penitenzieria Apostolica)

जयंती और दण्डमोचन, मध्ययुगीन मानव से आधुनिक मानव तक

लोस्सेरवातोरे रोमानो पर कलीसिया में प्रायश्चित के रास्ते का विकास, पापस्वीकार की प्रथा की शुरुआत से लूथर और वर्तमान धर्मसिद्धांत तक।

वाटिकन न्यूज

दण्डमोचन क्या है उसे अच्छी तरह समझने के लिए, हमें पीछे मुड़कर देखने की जरूरत है। प्राचीन कलीसिया में आज के समान पापस्वीकार नहीं की जाती थी। पापों की क्षमा एक सामाजिक सच्चाई थी : व्यक्ति खुद को पापी स्वीकार कर (अधिक विस्तार में न जाकर जो आवश्यक नहीं थी), समुदाय में वापस लौटता था। व्यक्ति प्रायश्चित की यात्रा का पालन करता था जो कई महीनों तक लम्बा हो सकता था और कभी-कभी वर्षों भी लग जाता था, निर्भर करता था उसके पापों की गंभीरता पर। इस तरह, व्यक्ति पहले प्रायश्चित करता और अंत में (आमतौर पर पुण्य बृहस्पतिवार के दिन) अपने आपको धर्माध्यक्ष के सामने प्रस्तुत करता था जो उन्हें पापों से क्षमा कर देते थे। इस तरह इसका क्रम पहले : अपने पापों को स्वीकार करना, उसके बाद पछतावा करना और अंत में पापों से क्षमा पाना था।

हालाँकि, यह एक लंबी प्रक्रिया थी, जिसमें समय लगता था और कई तपस्याओं की आवश्यकता पड़ती थी। यह एक ऐसा मार्ग था जो जीवन में केवल कुछ ही बार किया जा सकता था, और इसका संबंध गंभीर पापों से होता था। (चोरी, हत्या इत्यादि) इसे शुरू करने से पहले सावधानी से विचार करनी पड़ती थी और इसे अक्सर बुढ़ापे की अवस्था में की जाती थी। (जब पाप करने की स्थिति कम हो जाती थी।)

मध्य युग में ख्रीस्तीय जीवन मठवास की ओर आगे बढ़ा, जहाँ की स्थिति बहुत अलग थी। मठवासी एकांत छोटे समुदायों में जीते थे, लेकिन वहाँ भी छोटे पाप हो जाते थे और हर पाप के लिए महीनों एवं सालों तक प्रायश्चित करना संभव नहीं था...उससे भी बढ़कर, धर्माध्यक्षों से मिलना आसान बात नहीं थी।

अतः मठाधीश के सामने पाप स्वीकार करने की प्रथा प्रचलित हुई, जो तुरंत पापमुक्ति देते और फिर तपस्या निर्धारित करते थे। जैसा कि हम आज भी करते हैं।

इस नई प्रणाली में अपराध (पापस्वीकार से समाप्त) और सजा (पाप की क्षतिपूर्ति के लिए माफी प्राप्त करने के बाद भुगतान किया जाना) के बीच अंतर उत्पन्न हुआ। चूंकि प्राचीन व्यवस्था को समाप्त नहीं किया गया था, इसलिए तपस्या की अवधि की गणना हमेशा दिनों, महीनों और वर्षों में की जाती थी। मठों में विशेष "किताबें" (प्रायश्चितात्मक पुस्तकें) भी मौजूद थीं जो लगभग सभी संभावित पापों के लिए प्रायश्चित की अवधि निर्धारित करती थीं।

हालाँकि, विशेष अवसरों (महत्वपूर्ण छुट्टियों, असाधारण घटनाओं) पर, एक अच्छा पश्चातापकर्ता "सजा में छूट" पा सकता था। कुछ और अच्छे कार्यों के बदले में कई दिनों, महीनों या वर्षों की तपस्या कम हो जाती था। यह विशेष ऑफर दण्डमोचन कहलाया, जो काफी सुविधाजनक था; इसलिए अच्छे ख्रीस्तीय अवसर को जाने नहीं देते थे।

अरबों द्वारा येरूसालेम पर आक्रमण कर उसे पुनः जीत लेने के बाद, मिशन असंभव की स्थिति में था। तब 1096 में पोप अर्बन द्वितीय ने इस उपक्रम के अत्यधिक उच्च जोखिम को देखते हुए, पहली बार ऐसा प्रस्ताव लाया जो पहले कभी नहीं देखा गया था कि जो पवित्र शहर को आज़ाद कराने के लिए जायेगा, उसके लिए सजा की पूरी माफी होगी।

यह पहला पूर्ण दण्डमोचन था। तभी से, पोप अधिक से अधिक बार जो ख्रीस्त के प्रतिनिधि और संत पेत्रुस के उत्तराधिकारी हैं उस “कुँजी की शक्ति” का प्रयोग करने लगे जिसको येसु ने दण्डमोचन के खजाने को खोलने के लिए प्रदान किया है। प्राचीन तपस्या के दिनों, महीनों और वर्षों के लिए मुक्ति के अनंत मूल्य को सीधे प्रतिस्थापित करना : मध्य युग के अधिकांश समय में एक "विनिमय कार्यालय" की भारी मांग थी।

मध्यकाल में लोगों का ईश्वर के साथ एक तात्कालिक, सहज संबंध था: वे उनकी दया पर विश्वास करते थे, लेकिन उनके न्याय से डरते थे, क्योंकि वे उनके साथ संबंध को "मध्ययुगीन" तरीके से, यानी राजा और प्रजा के बीच एक सामंती संधि के रूप में सोचते थे।

वे अपने आपको पूरी तरह उनके हाथों में सौंप देते थे ('हाथ जोड़कर प्रार्थना करने का भाव' सामंती समारोहों से आता है) और उनके नियमों का पालन करने का वादा करते थे; बदले में उन्हें शैतान की चालों के विरुद्ध सुरक्षा, सहायता और संरक्षण प्राप्त होती थी।

ईश्वर के कानून का उल्लंघन करना राजा के लिए एक बहुत ही गंभीर अपमान माना जाता था, जो, उनकी सुरक्षा हटाकर, उल्लंघनकर्ता को दंड के भागी बना देता था। इसलिए "ईश्वर की कृपा की ओर" लौटने, एक नए सामंती समझौते पर हस्ताक्षर करने और इस प्रकार शैतान के खिलाफ "एंटीवायरस को फिर से स्थापित करने" की व्याकुलता होती थी।

जब पोप बोनिफेस 8वें ने 1300 में पहली जयंती की घोषणा की, जिसमें सभी को रोम में केवल तीस दिनों की प्रार्थनाओं के बदले पूर्ण दण्डमोचन देने का वादा किया गया, तो तीर्थयात्रियों की एक बड़ी भीड़ ने शहर पर उमड़ पड़ी।

तब से "दण्डमोचन" और "जुबली" एक सफल संयोजन रहा है...

 उन शताब्दियों में मुक्ति की चिंता शांत नहीं हुई, जिसने पहले से ही ज्ञात धर्मसिद्धांत को गहरा करने को बढ़ावा दिया, जिसके अनुसार एक अच्छा काम तपस्या के समय को कम कर सकता है। संतों की संगति के नाम पर, अर्थात्, वह संबंध जो सभी बपतिस्मा प्राप्त लोगों को मसीह के एक रहस्यमय शरीर में एकजुट करता है, निष्कर्ष निकाला गया कि सजा में छूट सभी ख्रीस्तियों, जीवित और मृत दोनों पर लागू की जा सकती है।

दण्डमोचन की भूख ख्रीस्तीयों के बीच दूसरी शताब्दियों में भी बनी रही।

मध्य युग की विशिष्ट कृषि अर्थव्यवस्था से बाहर निकलने और आधुनिक युग की विशिष्ट मौद्रिक अर्थव्यवस्था में प्रवेश के साथ ही दण्डमोचन भी बाजारों में प्रवेश कर गया।

मध्य युग की संपत्ति भूमि द्वारा दी गई थी जो जीविका और स्वायत्तता की गारंटी देती थी; आधुनिकता का धन पैसा है, जो आपको बाज़ार में वह चीज़ खरीदने की अनुमति देता है जो पहले ज़मीन से प्राप्त की जाती थी।

नागरिक समाज में, सार्वजनिक कार्यालय, महान उपाधियाँ, मजिस्ट्रेट... कलीसिया में, कार्डिनल, एकांत मठवास, धर्मप्रांत आदि बेचे जाने लगे। सबसे अमीर व्यापारी राजाओं, सम्राटों, संत पापाओं, धर्माध्यक्षों को भी पैसा उधार देते थे।

एक छब्बीस वर्षीय जर्मन बिशप एक बड़े धर्मप्रांत को खरीदने के लिए एक बड़े बैंक से कर्ज में डूब गया। उसे जितना हो सके पैसा जमा करना था और कर्ज से छुटकारा पाने के लिए जल्दी से नकदी जुटानी थी।

चूँकि पोप को भी धन की आवश्यकता थी क्योंकि संत पेत्रुस महागिरजाघर का निर्माण करना था। दोनों ने एक ही प्रणाली अपनायी : दण्डमोचन प्राप्त करने के लिए एक प्रचार अभियान चलाया। अब अच्छा काम येरूसालेम को पुनः प्राप्त करना केवल नहीं था, बल्कि सिर्फ कुछ रूपये दान करने थे।

 मुक्ति की चिंता हमेशा बहुत अधिक रही है, जो अब बेरहमी से बाजार के तर्क में प्रवेश कर गई, उस विज्ञापन नारे के साथ: "जब सिक्का बजता है, तो आत्मा स्वर्ग चली जाती है।"

धर्माध्यक्ष ने अपने धर्मप्रांत में पोप के दण्मोचन का प्रचार किया और चढ़ावे का एक प्रतिशत अपने लिए रखा। प्रस्ताव की अस्पष्टता (आज हम इसे "भ्रामक विज्ञापन" कहते हैं) के कारण राजस्व बढ़ती गई, लेकिन एक निश्चित बिंदु पर खेल रुक गया।

एक युवा अगुस्टिनियन, ईशशास्त्री प्रोफेसर मार्टिन लूथर ने घाव पर अपनी उंगली रखी: यदि हृदय परिवर्तन नहीं होता, तो पोप के प्रमाणपत्र बेचने का कोई मतलब नहीं है!

मनुष्य बदल चुका है, और ईश्वर के साथ उसका रिश्ता भी बदल गया है: आधुनिक मानव अब एक सामंती संधि का विषय नहीं है, बल्कि सत्य की खोज में एक बेचैन, सभी रहस्यों के प्रति जिज्ञासु व्यक्ति है। ईश्वर के साथ वह निष्ठापूर्ण एवं स्वतंत्र संबंध बनाना चाहता है, और हिसाब चुकाने की चिंता से व्याकुल नहीं है। जब उसने अपने साथियों को इस पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित किया। चर्चा नियंत्रण से बाहर हो गई और पूरी जर्मनी में बात फैल गई और भारी सफलता मिली।

दण्डमोचन, मनपरिवर्तन के लिए एक मदद से बदलकर, कलंक का प्रत्याय बन गया था और एक विरोध प्रदर्शन का विस्फोटक पूरे यूरोप में फूट पड़ा: और यह कई अंतरात्माओं के लिए वैसा ही बना, जैसा पांच शताब्दी पहले हुआ था उसकी गंभीरता से आज भी आहत है।

आइये, हम उन चीजों को क्रमबद्ध करें कि कलीसिया दण्डमोचन के धर्मसिद्धांत पर आज क्या बोलती है? उन बातों से शुरू करें जो मान्य नहीं हैं : 1967 में पोप पॉल छटवें ने "सजा की छूट" के लिए दिन, महीने और वर्ष समाप्त कर दिए। दण्डमोचन आज आंशिक या पूर्ण हो सकता है और अतीत की तुलना में बहुत कम है। वे गुण अधिक महत्वपूर्ण नहीं हैं। आज सबसे बढ़कर, आध्यात्मिक धर्मसिद्धांत सिखाया जाता है जिसके पीछे है: पाप के अवशेषों का धर्मसिद्धांत।

पापस्वीकार के बाद पाप समाप्त हो जाते हैं, लेकिन पाप के प्रभाव के प्रति उदासी बनी रहती है। बुराई अपना आकर्षण बनाए रखती है, हमें प्रलोभित करती रहती है, हमें कमज़ोर बनाती है, हमें हमेशा उन्हीं पापों में फँसा देती है। जो व्यक्ति ईश्वर के प्रति "गंभीर" है वह अच्छी तरह से जानता है कि कोई भी यह सोचकर खुद को धोखा नहीं दे सकता कि पाप को समाप्त करने के लिए एक पापस्वीकार संस्कार पर्याप्त है। यदि हमें विश्वास होता तो निश्चित ही ऐसा होता, लेकिन हमारी कमजोरी ऐसी है कि दुर्भाग्य से यह पर्याप्त नहीं है। यहाँ तक कि शरीर को भी किसी गंभीर बीमारी के बाद पूरी तरह से ठीक होने के लिए लंबे समय की आवश्यकता होती है। पाप का आकर्षण, उसके अवशेष उन लोगों के लिए बोझ बन जाते हैं जो ईश्वर की इच्छा पर शीघ्रता से चलना चाहते हैं।

पाप का दंड वास्तव में स्वास्थ्य-लाभ की एक लंबी अवधि है जो हमें हमारे प्रति ईश्वर के प्रेम की ओर तेजी से दौड़ने से रोकती है।

कलीसिया, उन लोगों की मदद करने के लिए जो जल्दी ठीक होना चाहते हैं, कुछ अच्छे कार्यों का संकेत देती है जो निश्चित रूप से जल्द ठीक होने के लिए उपयोगी हैं: हमें कलीसिया के विश्वास (प्रेरितों के धर्मसार और पोप के लिए प्रार्थना) के साथ, संस्कार में ख्रीस्त एवं भाई-बहनों के साथ हमारे संबंध को मजबूत करने की सलाह दी जाती है (परोपकारी कार्यों के द्वारा)। जब इन कार्यों के साथ एक दण्डमोचन (आंशिक या पूर्ण) प्राप्त किया जाता है, हम विश्वास करते हैं कि पाप के प्रति आकर्षण कम हो जाता है और इसके बदले, प्रेम एवं पवित्रता खास रूप से बढ़ जाती है। पाप का मैल दूर हो जाता है और व्यक्ति पहले की तुलना में तेजी से ठीक हो जाता है।  

यही कारण है कि आज एक अच्छा ख्रीस्तीय पहले की तरह इस “विशेष ऑफर” को खोना नहीं चाहता है।  

 

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17 May 2024, 17:25